Hamaari Adhuri Kahani - A love Story Part - 4

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हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा। (भाग – 4)


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शिर्षक (Title) - हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा (Love Story)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


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गौरी मान गयी और मैंने उसके घर में कजरी चाची और गौरी के मामा को मना लिया, कैलाश भी मदद करने को तैयार था ... कल से एक नये कल का आगाज़ होने वाला था।

अगली सुबह हम एक नयी उम्मीद के साथ जागे। गौरी को मैंने सुबह पांच बजे ही घर आ जाने को कहा था, उसने वैसा ही किया। सबसे पहली चुनौती थी सातवीं कक्षा की तैयारी करने की। मैंने और कैलाश ने मिलकर सातवीं कक्षा की सिलेबस और किताबों का प्रबंध कर लिया।

फिर हमें जरुरत थी एक समय सारणी अर्थात रुटीन की जो मैंने और गौरी दोनो मिल कर अपने अपने समय के हिसाब से बना ली। गौरी सुबह पांच बजे आती और मैं सुबह सुबह उसे पढ़ने के लिए टास्क दे देता, वह एक से ढेढ़ घंटे पढ़ती और तब तक मैं उसे समय शाम का टास्क तैयार का देता। जब सुबह जब सात बज जाते तो गौरी मेरा और कैलाश का टिफिन और लंच तैयार कर देती और अपने घर चली जाती और हम लोग भी ऑफिस से लिए निकल जाते। शाम को आकर मैं गौरी के लिए सुबह का टास्क तैयार कर देता।

इसी तरह पढाई का सिलसिला शुरु हुआ। अब हमारे पास एक लक्ष्य था जिसे किसी भी किमत पर हासिल करना था। ज्यादा व्यस्तता होने के कारण दिन कब बीत जाता, पता ही नहीं चलता। दिन महिने  में बदले और महिने साल में, अब सातवीं कक्षा की परीक्षा की बारी थी, हमने मुख्य शहर के स्कुल में बात कर रखी थी, जब वहां हमने गौरी की कहानी और अपनी मजबुरियां बताई तो स्कुल के प्रधानाध्यापक गौरी की परीक्षा के लिए राजी हो गये। अब गौरी को परीक्षा दिलाने की पुरी तैयारी हो चुकी थी।

जब गौरी परीक्षा देने के लिए जाती तब मैं ऑफिस से छुट्टी ले कर उसके साथ उसे परीक्षा दिलाने चला जाता। मां अक्सर मुझे फोन करती और छुट्टी लेकर पटना आने को कहती पर गौरी के पढ़ाई और परीक्षा में सारी छुट्टियां खत्म हो जाती तो अपने घर भी नहीं जा पाता।

परीक्षा के बाद एक महिना और बीत गया और अब बारी परिणाम की थी। मैं रिपोर्ट कार्ड लाने के लिए स्कुल गया। थोडी देर इंतजार करने के बाद गौरी का परिणाम पत्र मुझे मिला और लगभग आधे तक मैंने वहां के प्रधानाध्याक से बात की और फिर मैं घर आ गया। आते आते शाम हो गयी मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा और आकर हाथ मुंह धोया और खाना कर सो गया।

सुबह सुबह पांच बजे गौरी आई, उसने पहले कैलाश से पुछा की परीक्षा का परिणाम क्या हुआ। तो
कैलाश ने जवाब दिया – पता नहीं, कल शाम को आया, खाना खाया और सो गया, हर रोज़ तुम्हारे हाथ के बने खाने की तारिफ करता था पर पता नहीं कल क्या हुआ? जा कर एक बार पुछ लो उसी से, अभी भी सोया हुआ है।




गौरी मेरे कमरे में आई।
गौरी – बाबुजी, जी... मैंने – हम्म्म... सो रहा हुँ ... अरे चैन से सोने तो दो....।
गैरी संकोच में पड़ गई और मेरे कमरे से बाहर आ गई और मेरे जागने का इंतजार करने लगी।
मैंने फिर गौरी को आवाज़ लगाई और कहा – टेबल पर तुम्हारा रिपोर्ट कार्ड है देख लो।

गौरी कमरे के अंदर आई और अपना रिपोर्ट कार्ड देखा और बहुत खुश हुई जैसे ही उसने मुझे बिस्तर से उठाने के मुडी तो उसने मुझे वहां नहीं पाया जब बरामदे आई तो देखा की मैं और कैलाश पागलों की तरह गाना गा रहे और नाच रहें है... ये सब देख गौरी खिलखीला कर हंस पडी।
मैंने उसका यह रूप पहली बार देखा ... वो पल ठीक वैसा था जैसे कई बरसों के बाद रेगिस्तान में बारिश हुई हो। मैं बस उसे देखता ही जा रहा था। हम सब बहुत खुश थे।

जब सब शांत हो गये तो मैंने फिर एक और खुशखबरी सुनाई,
मैंने कहा  – अरे, भाई रुक क्यों गये अभी एक खुशखबरी बाकि है। कैलाश – वो क्या है? मैंने कहा – जब मैं स्कुल से रिपोर्ट कार्ड ले कर निकलने वाला था, तभी प्रधानाध्यापक ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया और आधे घंटों तक मुझसे बात की। उन्होने कहा की गौरी बहुत तेज विधार्थी है तो उन्होने गौरी का नाम वैसे गरीब छात्र जो पढ़ाई में अव्व्ल है उनके लिस्ट में डाला है अब उसे स्कुल के फंड से छात्रवृति भी मिलेगी और गौरी को पढ़ाई या परीक्षा की कोई अलग से पैसे भी नहीं लगंगे।

इतना कह कर हम फिर से नाचने लगे। हम सभी उस दिन खुश थे और क्यों न हो हमने पहली बार सफलता का स्वाद चखा था। गौरी मुझे देख कर हंस रही थी। मैं उससे आंखे बचा कर उसकी प्यारी से हंसी देख रहा था। जब हम शांत हुए तो ...

गौरी ने एकाएक मुझसे कहा – मैं गुरुदक्षिणा में आपको क्या दुँ?
मैं पुरे उत्साह में था, एक पल तो मेरा जी तो चाहा की उसे ही मांग लुँ, जिन्दगी भर के लिए, पर मैंने अपने उत्साह को काबु किया पर फिर भी मेरे मुँह कुछ अनायास ही निकल पडा।
और मैंने कहा – फिक्र मत करो, गुरुदक्षिणा मैं तुम्हारे हाथों से ही लुंगा। ये मेरे वादा है तुमसे।

इतना कहने के बाद मैं खुद सोच में पड़ गया कि मैंने ऐसा क्यों कहा? मेरा मन उस समय कुछ भी सोच नहीं पा रहा था।

अब हम और भी मेहनत करने लगे फिर एक-दो साल कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। अब बारी दसवीं बोर्ड परीक्षा की थी। गौरी और मैंने जी तोड मेहनत की। घर से बार बार फोन भी आ रहा था मैं तीन-चार सालों से एक बार भी मां-पिता जी से मिलने भी नहीं जा सका था।

इधर मैं घर में अकेला हो गया था क्योंकि छ: महिने पहले कैलाश का ट्रांसफर हो चुका था। इसलिए गौरी की परीक्षा दिलवाने में मुझे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

देखते ही देखते दसवीं की परीक्षा भी खत्म हो गई और हम परिणाम के इंतजार में थे। गौरी ने सारी परीक्षा ठीक से दी थी।

परीक्षा का परिणाम आज सुबह के अखबार में आने वाला था पर इससे पहले की वो अखबार वाला आता, घर पर डाकिया आ गया और एक लिफाफा देकर गया जो मेरे नाम से था। इससे पहले कि मैं लिफाफा खोलता, गौरी आ गई और उसके हाथ में अखबार था जिसमें परीक्षा का परिणाम था।

गौरी ने जोर की आवाज में मुझसे कहा – बाबुजी ... मैं पास हो गई....!


इतना सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना न था और हम दोनो बहुत ही उत्साहीत थे, एकाएक वो मेरे करिब आई और मैंने उसे अपने गले से लगा लिया ... उसने भी कोई विरोध नहीं किया और हम दोनो कुछ पलों के लिए उसी अवस्था में थे फिर जब हमें एहसास हुआ की हम एक दुसरे के कुछ ज्यादा करीब है तो हमने अपने कदम पीछे कर लिए और जब सब कुछ सामान्य हुआ तो गौरी बिना कुछ बोले अपना सिर झुका कर वहां से चली गयी।

मैंने भी उसे पीछे से कोई आवाज़ नहीं दी।

मुझे खुशी इस बात की थी, कि हमने जो लक्ष्य चुना, उसे हासिल कर लिया था। इसके बाद मेरी नज़र उस लिफाफे पर पड़ी जो मुझे सुबह डाकिए से मिली, उसे जब मैंने खोल कर पढ़ा तो मुझे दुख हुआ क्योंकि अब बिलासपुर से जाने का समय आ चुका था।


कहानी आगे जारी रहेगी...
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