The Boy Friend Part - 17

Share:

द बॉयफ्रेंड (भाग – 17)


Follow my blog with Bloglovin

शिर्षक (Title) - द बॉयफ्रेंड (भाग – 17)।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा, रोमांचक कथा (Love Story, Thriller)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


The_Boy_Friend


और बाहर पुलिस वाले भी बेबस नज़र आ रहे थे, पुलिस एक बड़ा अधिकारी अपने साथियों से कहता है  - रात के अंधेरे में हम कोई कदम उठा नहीं सकते है इसलिए हमें सुबह होने का इंतज़ार करना पड़ेगा, तब तक उपर वाले से दुआ करो की कॉलेज़ के अंदर सब कुछ ठीक -ठाक हो ।

उधर विश्वजीत अपने प्लान के मुताबिक काम करना शुरु कर देता है । वह अपने सभी साथियों से तैयार रहने को कहता है -
विश्वजीत - तुम सभी तैयार हो ना ?
सभी लोग कहते है - हां..हां ... ।

विश्वजीत अपनी पैर के आस्तीन से एक छोटी सी बंदुक निकालता है, यह देख कर आशि विश्वजीत से पुछती है
आशि - ये बंदुक तुम्हारी है ?
विश्वजीत - हां ... ।
आशि - बंदुक रख सकते हो पर मोबाईल नहीं ?

विश्वजीत - (आशि की ओर देख कर ) तुमने ... यहां इस गांव में किसी को मोबाईल चलाते देखा है ?
आशि - (थोड़ी देर सोच कर) नहीं ... इस पर तो मैंनें कभी ध्यान दिया नहीं ... पर हो सकता है की यहां मोबाईल मंहगी होने के कारण लोग इस्तेमाल नहीं करते हों ।
विश्वजीत - नहीं ... यह वजह नहीं है ।
आशि - तो क्या वजह है ?

विश्वजीत - क्योंकि यहां मोबाईल का नेटवर्क ही नहीं है ।
आशि - अच्छा तो फिर मेरा मोबाईल कैसे काम करता है ?
विश्वजीत - जिसे तुम मोबाईल समझ रही हो वो मोबाईल नहीं है, हमारे देश में मोबाईल की टेक्नोलॉजी अभी इतनी विकसीत नहीं हुई की आम आदमी उसे रख सके ।
आशि - मतलब ?
विश्वजीत - (चीढ़ते हुए) हर बात में मतलब क्यों पुछती हो ?
आशि - ऐसे पुछ लिया नाराज़ क्यों होते हो ?

विश्वजीत - तुम्हारे पास जो मोबाईल है, वो मोबाईल नहीं बल्कि उसकी शक्ल में एक एडवांस कम्युनिकेशन माईक्रो डिवाईस है, जिसका एंक्रिप्टेड रेडियो सिग्नल सीधे भारतीय सुरक्षा संस्थान की सेटेलाईट से कनेंटेड है, इसे तुम्हारी सुरक्षा के लिए तुम्हें दिया गया था ।

आशि - (अपने आप में फुसफुसाते हुए) पता नही अभी और क्या क्या जानना बाकि है ?
विश्वजीत - (चारों फौजी की टीम से कहता है) जैसे ही मैं इशारा करुँ तो तो तुम चारों में से एक बिना कोई आवाज़ किए, सबसे उपर छत पर चले जाना और वहां सबसे उपर के दरवाज़े पर कोई ताला नहीं होगा ... दरवाज़ा धीरे से खोलना और वहां उपर एक कक्ष होगा जिसमें दरवाज़ा नहीं होगा ... उस कक्ष में कुछ रस्सियां होंगी ... उन रस्सियों में सबसे बड़े टुकडे को छत के किसी खुंटे से बांध कर बाहर गिरा देना और बाकि पांच लोग में से चार लोग पांचवीं मंज़िल की सबसे पीछे वाले कक्ष में छुपे रहना ... और आशि को सबसे सामने वाली कक्षा में छुपाना ।

आशि - क्या मैं इन लोगों के साथ नहीं रह सकती ?
विश्वजीत - (आशि को सभी से थोड़ी दुर दुसरे कोने में ले जाकर, धीरे से कहता है )आशि अगर ये लोग तुम्हारे साथ रहे तो मारे जायेंगे ?
आशि - इतना यकिन से कैसे कह सकते हो तुम ?
विश्वजीत - आशि ... यह संघर्ष होगा ये पहले से तय था...

आशि - (आश्चर्य से विश्वजीत को देखते हुए) क्या मतलब है तुम्हारा ?

विश्वजीत आशि की ओर आश्चर्य से देखता है क्योंकि वो फिर से मतलब पुछ रही थी ।

विश्वजीत - मैं मतलब तो समझा नहीं सकता है... पर मेरा यकिन करो यह संघर्ष होगा ये पहले से तय था, उन आतंकियों को यहां लाया गया है और उनका एक ही मकसद है तुम्हें जिंदा पकड़ना और रास्ते में जो भी आये उसे मिटा देना , ... अगर तुम्हारी जान चली गई तो हम लोगों और उन लोगों में से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा और अगर तुम उनके गिरफ्त में आ गयी तो इस कॉलेज़ की एक-एक दीवार गिरा दी जायेगी और फिर धीरे धीरे पुरा गांव नशे की गिरफ्त में आ जायेगा । पर हम इस मुसिबत से निकल सकते है बस हमें अपनी इच्छा शक्ति और काबलियत से इस संघर्ष के परिणाम को अपनी तरफ मोड़ना है, इसलिये मैं जैसा कहता हुँ वैसा करो ।

इतना कह कर जैसे ही विश्वजीत अपने दुसरे साथियों तरफ जाने के लिए मुड़ता है तो आशि फिर से एक सवाल पुछती है

आशि - (निराशा भरी मुस्कान के साथ) विश्वजीत ... हम यहां से बच कर निकल तो जाएंगे न ?
विश्वजीत आशि की तरफ वापस मुड़ता है और कहता है -

विश्वजीत - (आंखों में जोश भरते हुए, गर्व के साथ) एक बात याद रखना आशि ... संघर्ष का हर वो लम्हा जिसमें इतिहास बनता है, वो लहु का प्यासा होता है, ... जान की कुर्बानी तो किसी न किसी को तो देनी ही होगी पर मैं तुम सभी को यहां से सही सलामत बाहर निकाल दुंगा ये मेरा वादा है ।

आशि - तुम पर पुरा भरोसा है मुझे ।

इतना कह कर आशि अपनी टीम के साथियों के साथ मिलकर ठीक वैसा ही करती है जैसा विश्वजीत ने कहा था और विश्वजीत अपने टीम के साथियों के साथ दुसरे मंजिल पर जाकर छुप जाता है ।

प्लान के मुताबिक विश्वजीत को खुद ही अपने छुपने वाले जगह की जानकारी को देनी थी इसीलिए वह भागते समय रास्ते में कई चीज़ें ठोकर मारकर गिरा देता है जिसे दुसरे मंजिल पर खड़े दो आतंकी सुन लेते है और विश्वजीत को ढ़ुंढ़ लेते है ।

आतंकी विश्वजीत को देखते ही उस पर निशाना साध लेते है, पर इससे पहले की वो गोली चलाते है, विश्वजीत एक चाल चलता है, वो आलिया को अपने बाज़ुओं में जकड़ कर अपनी ढाल बना लेता है और उसके सिर पर बंदुक टीका कर आतंकियों से कहता है -

विश्वजीत - अगर तुम्हारे तरफ से एक भी गोली चली तो मंत्री के बेटी का भेजा उड़ा दुंगा और फिर न हम रहेंगे और न तुम और ना बचेगा तुम्हारा मिशन, ... सोच लो क्या करना है ।

आलिया का चेहरा ढ़ँका हुआ था और रात का अंधेरा भी था जिससे आलिया को पहचाना मुश्किल था ।
आतंकी सोच में पड़ जाते है और एक दुसरे से कहते है - ये कैसी चाल है, जो काम हमें करना चाहिए था वो तो ये लोग कर रहे हैं ।

तभी बाहर से एक आतंकी शोर मचाता हुआ अंदर आता है और पहले आतंकी से कहता है - जनाब ! बारह छत से एक रस्सी लटक रही है, लगता है वो छत पर से उतरने की कोशिश कर रहे हैं ।

यह सुन कर पहला आतंकी सभी को छत की ओर जाने के लिए है, सभी आतंकी छत की ओर बढ़ते है पर दुसरे मंजिल पर उन्हें अपने दो साथी के सामने विश्वजीत और आलिया दिखाई पड़ते है जिसे सभी आशि समझने लगे थे ।

इससे पहले की कोई कुछ करता विश्वजीत और आलिया अंधेरे का फायदा उठा कर फिर से छीप जाते है, सारे आतंकी कुछ देर तक विश्वजीत को दुसरे मंज़िल पर ढ़ुंढ़ते है ।

कुछ देर बाद पांचवी मंज़िल की सामने वाली कमरे में छीप कर बैठी आशि को विश्वजीत अचानक दिखाई पड़ता है जो उसे अपने पास आने का इशारा कर रहा होता है । आशि उसके पास जाती है, उसके हाथों में एक बड़ी बंदूक होती है जिसे देख कर पुछती है -

आशि - (धीरे से फुसफुसाते हुए) विश्वजीत तुम्हारी छोटी बंदुक इतनी बड़ी कैसे हो गयी ?
पर वो कुछ भी नहीं कहता और अपनी उंगली को अपने होठों पर रख कर चुप रहने का इशारा करता है और कुछ देर बाद वो आशि का हाथ पकड़ कर नीचे की मंजिल को ओर ले जाने लगता है ।

 जैसे वो दोनो चौथे मंजिल पर पहुंचते है तो एक आतंकी उन्हें देख लेता है और बंदुक तान देता है और कहता है - ए लड़के... इस लड़की को हमारे हवाले कर दे नहीं तो गोली चला दुंगा ।

विश्वजीत के प्लान मुताबिक आशि को अब अपना चेहरा काले कपड़े से ढकना था बिल्कुल आलिया की तरह की और वो ठीक वैसा ही करती है । उन दोनो के सामने खड़ा आतंकी पुरी ताकत से नीचे खड़े अपने साथियों को आवाज़ लगाता है -

आतंकी - दोनो मेरे सामने खड़े हैं, जल्दी सब लोग चौथी मंजिल पर आ जाओ ।
पर तीसरी मंजिल पर खड़े दो आतंकी में एक कहता है - क्या बक रहे हो, अरे वो मेरे सामने है तीसरी मंजिल पर और लड़की ने अपना चेहरा काले कपड़े से ढका हुआ है जल्दी सभी लोग यहां आओ ।

और फिर अंधेरे का फायदा उठा कर वो आतकियों के आँखो से ओझल हो जाते है और शुरु हो जाता है नुकाछुपी का खेल, कभी उन्हें लगता की वो दुसरी, तो कभी तीसरी और चौथी-पाँचवी मंजिल पर है । इस तरह से काफि वक्त गुज़र जाता है और सुबह की किरण निकलने लगती है और कॉलेज़ में धीरे-धीरे उजाला होने लगता है ।

विश्वजीत आलिया के साथ आतंकियों को भ्रमित कर ही रहा होता है की दिन रोशनी के वजह से उसकी चाल नाकाम होने लगती है और वो पांचवी मंज़िल पर चारों तरफ से आतंकिय़ों से घीर जाता है, सभी आतांकी उस पर एक साथ हमला कर देते है काफि देर तक मुठभेड़ होने के बाद वो थकने लगता है ।

विश्वजीत आलिया को भागने का इशार करता है, पर आलिया जैसे ही भागती है तो एक आतंकी उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागता और आलिया को बचाने के दरम्यान एक आतकीं विश्वजीत को धक्का देता है और विश्वजीत पांचवी मंजिल के खिड़की से बाहर गिर जाता है । आलिया यह देख कर स्तब्ध रह जाती है, पर वो चीख भी नहीं पाती है ।

कहानी आगे जारी रहेगी...

Follow my blog with Bloglovin


No comments

Thanks for Your Comments.