Hamaari Adhuri Kahani - A love Story Part - 5

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हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा। (भाग – 5)


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शिर्षक (Title) - हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा (Love Story)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


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मुझे खुशी इस बात की थी, कि हमने जो लक्ष्य चुना, उसे हासिल कर लिया था। इसके बाद मेरी नज़र उस लिफाफे पर पड़ी जो मुझे सुबह डाकिए से मिली, उसे जब मैंने खोल कर पढ़ा तो मुझे दुख हुआ क्योंकि अब बिलासपुर से जाने का समय आ चुका था।

उस लिफाफे में मेरी ट्रांसफर के ऑर्डर थे, मेरी पोस्टींग मुज्फ्फरपुर कर दी गई थी, आज सुबह मुझे नाश्ता करने की इच्छा बिल्कुल नहीं हो रही थी। मैं तैयार हुआ और भुखा ही ऑफिस चला गया। ऑफिस से शाम आते समय घर से फोन आया, की मां की तबियत खराब हो गई है, पिता जी ने छुट्टी ले कर घर आने को कहा।

मैंने उन्हें अपने ट्रांसफर की बात बताई तो उन्होनें कहा - ज्यादा चिंता की बात नहीं वापसी के सारे बन्दोबस्त करके ही आना। पर यहाँ से गौरी के बगैर जाने को मेरा मन नहीं कर रहा था।

मैंने सोचा मेरे जितने भी दिन यहाँ बचे है उसमें मैं पहले गौरी को अपने दिल की बात बताउँगा और अगर गौरी हाँ कर दे तो उनके माता पिता से उनका हाथ माँग लुंगा।...पर सोचने में तो काफि आसान था, गौरी से अपनी दिल की बात कहनी ही सबसे ज्यादा मुश्किल थी।

शाम हुई मैं अपने घर पहुंचा और खुद को यह समझाता रहा कि ‘किस्मत भी बहादुरों का साथ देती है’।
सुबह हुई तो आज काम पर कजरी चाची आई तो मैंने उनका हाल चाल पुछ लिया और गौरी के बारे में पुछना चाहा तब तक चाची ने खुद ही कहा – गौरी आज मंदिर गई है, राकेश बेटा तुम्हारी वजह वो इतना कुछ कर पाई और इतना कह मेरे पैर छुने लगी।

तो मैंने खुद को पीछे करते हुए कहा – ये आप क्या कर रहीं मेरी जगह कोई और होता तो शायद यही करता। गौरी की किस्मत में पढ़ना था और उसमें पढ़ने की लगन और चाह थी, मैं तो बस एक माध्यम था। चाची ने कहा – तुम हमारे भगवान के बराबर हो, तुम पर अटुट विश्वास है हमारा, अब एक और इच्छा है कि गौरी की शादी हो जाए। मैंने कहा – आप चिंता न करें, आपकी इच्छा जल्दी ही पुरी हो जाएगी।

रोज की तरह मैं ऑफिस गया, फिर शाम को घर आया। आज मैंने तय किया की गौरी से अपनी दिल की बात कह के रहुंगा। इसलिए मुझे जो गौरी से कहना था उसे एक कागज पर लिख भी लिया, मैंने सोचा कि अगर मैं कुछ कह नहीं पाया तो यह पत्र उसे थमा दुंगा, मैंने उस पत्र को अपनी उसी डायरी में रखा जिसमें मैं अपने जीवन के बारे में लिखता था, पर किसम्त को कुछ और मंजुर था।



गौरी के घर पास शहर से आया हुआ एक लडका रहता था, वो एक शिक्षक था उसने एक लडकी से अपने विवाह करने का प्रस्ताव लड़की घर वालों के समक्ष रखा, लडकी उस शिक्षक की ही एक शिष्या थी, तो पहले घर वालों ने इंकार कर दिया और फिर बात इतनी बिगड गयी की मामला गांव के मुखिया और पंचायत तक पहुंच गया।
गौरी के घर के पास ही एक खुला मैदान था जहाँ सारे लोग इकट्ठा थे। मैं भी वहां खडा सब कुछ देख रहा था क्योंकि ये देखना मेरे लिए भी जरुरी था। बहुत देर तक बहस चली कुछ फैसला तो नहीं निकला, पर गौरी के मामा के दोस्त जो स्कुल में पढाते थे जिनसे मैंने पहली बार गौरी के बारे में पुछा था, उसने मुझे देखा और थोडी देर बाद भीड़ के बीचों बीच जाकर जोर से अपनी बात कहनें लगा।

उन्होंने ज़ोर जोर से चिल्लते हुए कहा – की ये शहर वाले हमें बेवकुफ समझते हैं, पहले तो हमारे घर के बेटियों को पढाने के बहाने उनके नज़दिक आते हैं और उन पर अपने सम्मोहन का जाल फेंकते है फिर ऐसी परिस्थिति का निर्माण करते है जिसके प्रलोभन में आकर हम अपने बेटियों का विवाह कर उनके हवाले कर देते है और फिर ये शहरी लोग शहर ले जाकर अपने घर में हमारी बेटियों से नौकरानियों जैसा सलुक करते है।

मैं यह सब सुनकर हैरान था, अचानक मामा के दोस्त ने मेरी तरफ इशारा किया और कहा – क्यों राकेश बाबु आपकी भी योजना यही थी न?

मैं अचानक से यह सुन कर हैरान रह गया। मुझे समझ में नहीं आरहा था कि मैं क्या कहुं अगर पंचायत के सामने अगर ये बात खुल जाती कि मैं गौरी से विवाह करना चाहता हुँ तो मेरा तो जो भी होता मुझे परवाह नहीं थी इस वजह गौरी की पुरी ज़िन्दगी खराब हो जाती।

हड़बड़ा कर मैंने जवाब दिया,
मैंने कहा – बिल्कुल नहीं ऐसी कोई बात नहीं।
मामा के दोस्त ने पुछा – तो फिर गौरी पर इतनी मेहरबानी क्यों?
मैंने कहा – गौरी में मुझे सिर्फ एक लडकी नहीं दिखी बल्कि उसमें मुझे एक होनहार विधार्थी भी दिखा जो पढ़ना चाहता था। बस इसलिए मैंने...
मामा के दोस्त (बीच में टोकते हुए) ने पुछा – बस इतना ही?...गौरी के बारे में आपने ही मुझसे पुछा था न, पहली ही नज़र में उसमें विधार्थी दिख गई ? बडी कमाल की नज़र है आपकी?

गौरी को आज तक मैंने नहीं बताया था कि उसके मामा को उस दिन मेरे वजह से ‘स्कुल में छुप कर पढ़ाई वाली बात’ पता चली थी जिसकी कारण उसके मामा ने उस दिन कजरी चाची और गौरी दोनो को बहुत पिटा था।

मामा के दोस्त ने फिर चिल्लाकर कहा – पहले आप कजरी को काम पर रखते है और फिर गौरी भी आपके पास काम करने के आ जाती है, और आपसे पढ़ती भी है, आप उसके लिए अपने ऑफिस से न जाने कितनी छुट्टियां लेते और दिल खोल के खर्च भी करते हैं, माज़रा क्या है?

ये बातें गौरी अपने घर के दरवाज़े पर खडी हो कर सुन रही थी, और पता नहीं मेरे बारे में क्या सोच रही थी।

तभी एक आदमी भीड़ में से चिल्लाते हुए आया और पुरी भीड को उकसाते हुए कहा – इन शहरियों सुधारने का एक ही तरिका है ... मारो इन्हें....!

और पुरी भीड़ मुझ पर हमला के लिए मेरी ओर बढ़ी, पर मैं तय कर लिया था कि मैं भागने वाला नहीं था।
पर फिर आचानक गौरी के मामा बीच में आ गये।

और पुरा दम लगाकर एक लम्बी आवाज़ में कहा – रुक जाओ...!

फिर खांसते हुए गौरी के मामा ने कहा – रुक जाओ। इसमें राकेश बाबु का कोई दोष नहीं। राकेश बाबु की गौरी से मुलाकात तो मेरी वजह हुई थी, मैंने कजरी, अपनी छोटी बहन को शराब पीकर पीटा, उसके पैर में गहरी मोच आ गई उससे चला नहीं जा रहा था, फिर भी वो राकेश बाबु और कैलाश बाबु के लिए घर पर खाना बना कर ले जाना चाहती थी, मेरे लाख समझाने और धमकाने के बाद भी कजरी नहीं मान रहीं थी, तब जाकर मुझे ये एहसास हुआ की बात सिर्फ पैसों की नहीं है बात रिश्तों की भी हैं फिर मैंने कजरी का बनाया हुआ खाना एक डब्बे में डाल कर बिना किसी को बताए राकेश बाबु के घर के दरवाज़े पर छोड आया था और गौरी को सुबह मैंने ही उनके घर काम करने के लिये भेजा था। पर मुझे क्या पता था राकेश बाबु गौरी की जीवन में इंसान के रुप में भगवान बन कर आयेंगे। आज गौरी हमारे गाँव और बिरादरी के सभी लडकियों में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी लडकी है।

फिर गौरी के मामा गाँव के मुखिया के तरफ हाथ जोड़कर गये और मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा – आज इसी देवता के कारण गौरी इतनी काबिल है, और पास के दुसरे गाँव से एक बड़े परिवार का गौरी के लिए रिश्ता आया है और दहेज में उन्होंने सिर्फ हमारी बेटी ही माँगी है।

मैंने ये बात सुनी तो मैं सन्न रह गया और मेरे हाथों से मेरी डायरी छुट कर गिर गई जिसमें मैं वो पत्र रख लाया था। पुरी भीड़ मेरी तरफ बढ़ी और मुझे अपने कंधे पर उठा लिया जब मैं लोगों के कंधे पर था तब गौरी अपने उस भीड बीच आकर जमीन पर कुछ ढंढ रही थी।

किसी ने मुझे दोषी कहा और किसी ने देवता, पर एक बात तय थी, कि दोनो सुरतों में ये मेरी हार थी।
अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता था सिवाय अपनी किस्मत पर रोने के। अजीब है, देवता भी बदनसीब होते हैं।


कहानी आगे जारी रहेगी...
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