Hamaari Adhuri Kahani - A love Story Part - 6

Share:

हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा। (भाग – 6)


Follow my blog with Bloglovin

शिर्षक (Title) - हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा (Love Story)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


Hamaari_Adhuri_Kahani_A_love_Story


अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता था सिवाय अपनी किस्मत पर रोने के। अजीब है, देवता भी बदनसीब होते हैं।

जब वहाँ से भीड़ हटी तो मैं गौरी के घर गया और उसे नये जीवन के शुरुआत की शुभकामनायें दी। मुझे कुछ समझ में नहीं आरहा था कि मैं क्या कहुँ पर फिर भी मैंने कजरी और मामा जी भी काफि देर बात की।

उन्होंने मुझे गौरी के होने वाले ससुराल के बारे में बहुत कुछ बताया, मैंने भी उन्हें अपने ट्रांसफर और मां की तबियत के बारे में बताई और कहा कि वापसी के सारे इंतज़ाम हो चुके हैं और मुझे परसों अपने घर पटना वापस निकलना है।

और फिर गौरी के घर से चाची और मामा जी का आशीर्वाद लेकर खाली हाथ वापस लौट गया। वापसी के तैयारियों में एक दिन बीत गया, जाने का मन बिल्कुल भी नहीं था पर जाना तो था ही।

सुबह मैं जब घर से निकलनें लगा तो पुरा गाँव मुझे विदाई देने को आया सिवाय गौरी के। उसके मन क्या था मुझे अब तक नहीं पता चला। तभी एक छोटा सा बालक आया और कहा भाईया जी आपकी ये चीज गौरी दीदी के घर पर छुट गई थी।

मैंने देखा तो वो मेरी डायरी थी, जो गौरी के घर के बाहर गिर गई थी, मैंने उस बालक से अपनी डायरी ली और अपने बैग में भर कर दुखी मन से अपनी यात्रा पर निकल पडा। संतोष इस बात का था कि गौरी के होने वाले ससुराल के लोग और उसका होने वाला पति दोनो ही बहुत अच्छे थे।

अभी मैं अपने बस पर ही हुँ कुछ घंटों के बाद मैं अपने घर पर होउँगा।


कुछ घण्टे के बाद राकेश अपने घर पहुंचता है और सबसे अपने मां के बारे में पुछ्ता है। मां जैसे राकेश को देखती है उसे अपने सिने से लगा लेती है।

मां – कहाँ था मेरे बच्चे?... तुझे कितने दिनों के बाद देख रही हुँ।
राकेश – तेरे लिए बहु ढ़ुंढ़ रहा था,... तुम बताओ अभी कैसी है ठीक हो ना?
मां  - मुझे क्या हुआ? ठीक तो हुँ।
राकेश – पर पिता जी ने तो कहा तुम बीमार हो?तुम्हारी तबीयत ज्यादा खराब है...
पीछे से राकेश के पिता जी – अगर मैं झुठ नहीं बोलता तो तु आज भी नहीं आता।
राकेश – पापा! डरा दिया आपने....(पिता के पैर छुते हुए)
पिता जी – मुजफ्फरपुर कब जाना है?
मां – आप भी ना, क्या कह रहे है...अभी अभी तो आया है... 
पिता जी (बीच में रोकते हुए) – हां हां वही पुराना डायलॉग...जी भर के देख लो अपने लाडले को... हा हा हा...।

कुछ दिनों के बाद राकेश मुजफ्फरपुर में ड्युटी जॉयन कर लेता है। वो बिलासपुर से लाई हुई सारी वस्तुएं बिना खोले एक बैग में बंद करके पटना वाले घर पर ही रख देता है...

छ: साल बीत गये... 

राकेश का प्रमोशन हो जाता है और अब अपने विभाग में ऑडिटर की पोस्ट पर है। अभी वो पटना मे अपने घर पर है, राकेश ने अभी तक शादी नहीं की है और उसकी माँ उसे उम्र का वास्ता देकर शादी करने को बार बार कहती रहती है। पर राकेश मानता ही नहीं है शायद राकेश अपनी और गौरी की अधुरी कहानि के अंत से खुश नहीं है। कुछ तो था जो बचा था जिसे पुरा करना था पर क्या था, उसे समझ में नहीं आ रहा था।

वो अपने लैपटॉप पर काम कर रहा होता है कि उसके पास एक ई-मेल आता है जिसमें उसे अपने विभाग के बिलासपुर ब्रांच जाकर ऑडिट करने के आदेश होते है। यह वही ब्रांच है जहाँ वो काम करता था।

बिलासपुर का नाम सुन कर उसे गौरी की याद आती है। वो उस बैग तो निकालता है जिसमें उसने बिलासपुर यादें समेट कर रखी थी, काफि सारी चीजें थी, पर वो डायरी बहुत ही खास थी, राकेश अपने उंग़लियों से सारे पन्ने ऐसे ही पलटता जाता है जिसमें उसे एक कागज़ का टुकड़ा मिलता है, वो उसे देखता है ये वही पत्र था जिसे राकेश ने गौरी को देने के लिए लिखा था।

उस पत्र को राकेश देखता है तो पाता है की उस पत्र में सिर्फ उसी के हैण्डराईटींग नहीं थी, बल्कि गौरी की भी थी, जब गौरी के घर के बाहर वो डायरी गिरी थी तब गौरी नें उसे उठा लिया था। वो डायरी पढ ली और राकेश के पत्र पर ही जवाब लिख कर उसे डायरी में रख दिया जिसका राकेश को आज छ: सालों के बाद पता लगा।

उसमें लिखा था – 

काश आप भगवान नहीं इंसान होते तो सारी जिंदगी मेरे किस्मत में होते। कृष्ण और मीरा का संगम सिर्फ इसलिए नहीं हो सका क्योंकि मीरा इंसान थी और कृष्ण भगवान। 
आपकी गौरी।

राकेश यह पढ़कर जी भर कर रोया। फिर उसने बिलासपुर जाने की तैयारी कर ली और अगली सुबह वो यात्रा पर निकल गया। जब वो बिलासपुर पहुंचा तो सबसे पहले वह गौरी के घर गया पर अब वहां कोई नहीं रहता था, किसी ने बताया कजरी चाची और गौरी के मामा दोनो पिछले ही साल गुज़र गये। राकेश को गौरी के ससुराल का पता मालुम होता हैं।

राकेश के आंखों से आंसु थमने का नाम नहीं ले रहे थे किसी भी तरह वह अपने आप को संभाल कर ऑफिस के लिए बढता है अब वहां की सडके कच्ची नहीं थी, सो राकेश को सिधे अपने ऑफिस तक जाने के लिए ऑटो मिल जाता है। जिस पाठशाला में छुपकर गौरी पढ़ती थी, वहां एक विशाल भवन बना हुआ था। राकेश पहले अपने ऑफिस जाता है वहां पर अपने काम को निपटाता है।

काम खत्म होते होते शाम हो जाती है। ठंड का मौसम के कारण रात भी जल्दी हो जाती है, राकेश किसी भी तरह रात काट लेता है और सुबह तैयार हो कर दुसरे गाँव की ओर चल पड़ता है जहाँ गौरी का ससुराल था।

जब वह गाँव पहुँचता है तो देखता है कि गौरी के घर बाहर भीड़ लगी है ढेर सारे लोग जमा है। राकेश वहाँ खडी एक आदमी से कहता है वह इस गाँव मे नया है और पुछता है की इतनी भीड़ यहाँ क्यों है, तो 

वह आदमी कहता है – बाबुजी, ये घर हमारे सरपंच जी का है। सरपंच हर साल गरिबों कम्बल और कपड़े बांटती है।

बड़े बड़े बाजे के साथ वहाँ पुजा के मंत्र के उच्चारण हो रहा था। राकेश फिर उत्सुकता से पुछ्ता है,

राकेश – सरपंच ? ... कौने है आपके सरपंच? 
आदमी कहता है – पहले तो श्री अमरनाथ जी थे पर एक साल पहले उनकी बहु ने स्नातक की परीक्षा पास कर ली अब वहीं सरपंच हैं। उन्हें पुर्ण सहमती से सरपंच चुना गया है। सरपंच बनने पहले ही वो अपने गांव के जिस पाठशाला में पढ़ी, वहां उनकी सलाह से एक भव्य विधालय बनवाया गया। उस पाठशाला का नाम उन्होंने अपने गुरु के नाम पर रखा है। वहां शिक्षा पुरी तरह सरकार के तरफ से मुफ्त है, पुरे गाँव में सबसे ज्यादा पढी लिखी इंसान है। उनके ससुराल और यहां के सभी गाँव में बडी इज्ज्त है। वो सभी के दुख को अपना दुख समझ कर काम करती हैं। गांव के लोग तो उनकी पुजा करते है इतनी अच्छी है वो। आज का दान वो अपने गुरु के ही नाम पर करने वाली है। इसीलिए यहां गरु पुजा भी हो रही है।

राकेश – क्या नाम है उनका? आदमी कहता है – उनका नाम गौरी है।

यह सुनकर राकेश के खुशी और आश्चर्य का ठीकाना नहीं रहता है, उसके खुशी के आँसु को वह रोक नहीं पाता है। अब राकेश को संतोष हो रहा था, उसे विधि के विधान पर असीम खुशी हो रहीं थी, अगर छ: साल पहले राकेश और गौरी की शादी हो जाती तो शायद इतना सम्मान उसे कभी न मिल पाता, अब राकेश को समझ आ गया कि उसे सिर्फ एक काम और करना है।



राकेश (अपने स्वेटर उतारते और जुते उतारते हुए) – भाईया एक काम करोगे मेरा? 
आदमी – क्या बाबुजी? 
राकेश – आप न मेरा ये स्वेटर और बैग थोड़ा संभालना और मुझे अपनी शाल दे दो... आपको कोई परेशानी तो नहीं? आदमी – नहीं, पर आप क्या कर रहे हो?

राकेश उस आदमी से गंदा सा चादर ले कर, अपने पतलुन को उपर सरका लेता और अपने पैर पास के पडे किचड से गंदा कर लेता है जिससे उसे पहचाना मुश्किल होता है। 
आदमी (राकेश के बारे में मन में सोचते हुए) – अचानक से इस आदमी भेजा सटक गया का? कर क्या रहा है ससुरा?

राकेश जाकर उसी पंक्ति में खडा हो जाता है जिसमें गौरी सभी को कम्बल और कपड़े बांट रही होती है।


कहानी आगे जारी रहेगी...
Follow my blog with Bloglovin

No comments

Thanks for Your Comments.