हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा। (भाग – 1)
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शिर्षक (Title) - हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा (Love Story)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)
लोग कहते हैं कि सफर में हमसफर साथ ना हो तो सफर एक सज़ा है,
पर उन्हें क्या पता कि तेरी यादों के साथ सफर करने का कुछ अलग मज़ा है।
युँ तो मेरे दोस्त मुझे भारत का आर्मस्ट्रॉंग बुलाते है पर मेरा असली नाम राकेश शर्मा है वजह तो आप समझ ही गये होंगें की मेरे दोस्त मुझे इस नाम से क्युं बुलाते है पर यकिन मानिये मैं वो राकेश शर्मा नहीं हूँ।
मैं बिहार का रहने वाला हूँ, उम्र लगभग 27 साल की है और... और देखने भी शायद ठीक ठाक ही लगता हुँ। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हुँ क्योंकि 22 साल की आयु में सरकारी नौकरी हो गयी और माँ कहती है की सोने के चने के नाक भले ही टेढे हों पर है तो वो सोना ही। वैसे मेरी नाक टेढी नहीं है।
पाँच साल पहले मैं बिलासपुर आया था। मेरी नौकरी सेंट्रल गवरर्न्मेंट की है और मेरी पहली पोस्टींग बिलासपुर् छ्त्तीसगढ़ में हुई। पाँच साल कैसे बीत गये पता भी नहीं चला और यहां से मेरा ट्रांसफर हो गया। आज मैं बिलासपुर से वापस जा रहा हूँ। मैं यहां आया तो अकेला था पर किसी याद साथ लिए जा रहा हूँ जिसे मैं शायद ही भुला पाऊंगा।
इसी तरह की सुबह थी जब मैं पटना से बिलासपुर के लिए रवाना हो रहा था पर आज साफ आसमान में जितने रंग मुझे दिख रहें है इतने तो उन दिनों इंद्रधनुष में नहीं दिखाई देते थे। खैर जगह अंजान थी और लोग अजनबी थे और जोरों की भुख लगी थी जब मैंने पहली बार बिलासपुर शहर में कदम रखा था। एक ढ़ाबा मिला पहले मैनें अपनी भुख मिटाई और फिर दुसरा काम था रहने के लिए किराए का मकान ढ़ुंढना जो की ज्यादा मुशकील नहीं था, मेरी यहां पहले से जान पहचान थी उन्होंने पहले से इंतजाम करा रखा था। उसका नाम कैलाश है हम दोनो एक विभाग के थे तो जान पहचान फोन पर पहले से हो गई थी। उसने मुझे अपना पता दे रखा था तो मुझे वहाँ पहुँचने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
मैनें दरवाजे पर दस्तक दी और अंदर से आवाज आई ‘आ रहा हुँ’।
दरवाजा खोलते ही ...
कैलाश ने कहा - अरे, राकेश कैसे हो यहां पहुँचने कोई तकलिफ तो नहीं हुई।
मैने पुछा - भाई तकलिफ तो नहीं हुई, पर हम पहली बार आमने सामने से मिल रहे हैं तो आपने मुझे पहचान कैसे लिया ?
कैलाश ने कहा – भाई देखो, यहाँ मै भी पहली बार आया हुँ किसी से जान पहचान ज्यादा हुई नहीं है तो मुझे ढुढने यहाँ इस वक्त कौन आ सकता है, वैसे हम एक ही उम्र के है तो ‘आप वाप’ की औपचारिकता रहने दो... ये बात मैं फोन पर कहने वाला था।
मैंने मन में सोचा बात तो यह ठीक ही कह रहा है तो... तो मैंने भी हामी भर दी और कहा 'हाँ तुम ठीक कह रहे हो'।
इस पर कैलाश ने कहा: ये हुई ना बात।
--- अगली सुबह ---
कैलाश और मैं ऑफिस गये और पहला दिन शुरू हुआ। कैलाश यहां पिछले चार महिनों से था तो उसके लिए एक आम दिन ही था पर मेरे लिये नहीं, पर काम करते करते वक्त का पता ही नहीं चला। छुट्टी हुई और हम घर आ गये और खाना बनाने के लिए तैयारियाँ करने लगे।
बस कई दिनों तक हमारी दिनचर्या यही रही, पर मुझे खाना बनाने से ज्यादा खाने का शौक था इसीलिए मैं एक खाना बनाने वाले को काम पर रखने का प्रस्ताव कैलाश के सामने रखा और कैलाश भी इसके लिए राज़ी हो गया।
कैलाश ने अगले दिन ऑफिस से छुट्टी ली और एक खाना बनाने वाले का प्रबंध करने के लिए निकला। मैं उस दिन ऑफिस अकेले जा रहा था। ऑफिस जाने के लिए हम किराये का ऑटो लेते थे। आज मुझे अकेले ही ऑटो से जाना था। ऑटो से उतर कर कुछ दुर पैदल भी चलना होता था और उस रास्ते में बच्चों के छोटी सी पाठशाला भी थी जिससे हमेशा बच्चों के हल्ले गुल्ले की आवाजें आती रहती।
अचानक मेरी नज़र एक 20 – 22 साल की लड़की पर पड़ी जो छुप कर शिक्षक की बातें सुन रही थी और वो अपने अभ्यास पुस्तिका में लिखने कि कोशिश कर रही थी शायद। मैंनें सोचा शायद उसे कक्षा से बाहर रहने की सज़ा मिली हो और मैं उस लम्हें अपने आँखों में कैद करके अपने ऑफिस की ओर बढ गया। आज का दिन भी खतम हो गया और मैं घर आया, तो घर स्वादिष्ट भोजन के सुगंध से सुगन्धित था मेरा मन आनन्दित हो उठा। मुझे समझते देर न लगी की कैलाश को खाना बनाने वाला मिल गया है।
मैं अतयंत ही रोमांचित होकर कैलाश को घर में ढुंढने लगा और रसोई में गया तो मेरे होश उड़ गये और मैं उलटे पांव रसोई से निकल कर भागा, इससे पहले मुझे कुछ भी समझ में आता, मैंने तुरंत ही कैलाश को फोन लगाया क्योंकि कैलाश घर पर था नहीं और रसोई में कोई महिला कपड़े ठीक रही थी।
कैलाश फोन पर – हैलो।
मैने पुछा – कैलाश, कहाँ हो तुम? (थोड़ा गुस्सा करते हुए)।
कैलाश फोन पर – मैं तो पास के दुकान पर हुँ, कुछ सामान लेने थे, बस मैं आ रहा हुं।
जैसे कैलाश मेरे सामने आया तो मैंने पुछा – हमारे घर में एक महिला है वो क्या कर रही है?
कैलाश - यार, वो खाना बनाने वाली है और वो आज से रोज काम पर आयेगी।
मैंने कहा – धत तेरी की, मुझसे गलती हो गयी, वो अपने कपडे ठीक रही थी और मैं रसोई के अंदर चला गया।
कैलाश – इसमें क्या प्रोब्लेम है वो तो हमारे मां की उम्र की है, चल कोई बात नहीं और अगर तुझे ऐसा लगे तो कि तुने गलती की है तो जाके दो-चार सौ बार माफी माँग लेना पर एक बात बता खाने की खुशबु कैसी लगी।
मैंने कहा – जबरदस्त है यार, आज तो खाने का मजा आजाएगा।
कैलाश – सिर्फ आज नहीं, हर रोज। चल घर के अंदर चलते है।
मैं घर के अंदर गया और अपनी भुल के लिये माफी भी माँगी तो उन्होंने बड़े प्यार से कहा – पगले तु तो मेरे बेटे जैसा है।
अब तो हमारी मजे में कट रही थी सुबह शाम खाना बनाने के झंझट के मुक्ति मिल गई। हम उन्हें चाची कह कर बुलाते...वैसे उनका नाम ‘कजरी’ था। अब जाके हमारी दिनाचर्या थोडी सी बदल रही थी। सुबह उठना, घर की सफाई करना, कजरी चाची का इंतजार करना, ऑफिस के लिए तैयार होना, सुबह का नाश्ता करके दोपहर की टिफिन लेना और ऑफिस के लिए निकल जाना और हाँ ... ऑफिस जाते जाते रास्ते में पाठशाला के बाहर उस लडकी को देखना।
इस तरह से छ:-आठ महिने गुजर गये। मैं और कैलाश शाम को कभी - कभी बाजार से शॉपिंग वगैरह कर लेते। एक दिन हम सुबह चाची का इंतजार कर रहे थे। काफि देर इंतजार करने के बाद हमने सोचा शायद चाची को कोई जरूरी काम होगा तो वह नहीं आई, सो हमने सुबह ब्रेड और दुध का नाश्ता लिया और ऑफिस चले गये। इसी तरह दो दिन गुजर गये, कैलाश उनके घर का पता जानता था तो हमने सोचा की उनके घर चलते है और क्या समस्या है ये जानने की कोशिश करते है। हम जैसे ही अपने घर से निकले वैसे ही मैंने सामने मैंने उसी लडकी को देखा जिसे मैं रोज पाठशाला के बाहर देखता था। एक तरफ मुझे खुशी थी की आज मैं उससे पुछ सकता हुँ की वह पाठशाला के कक्षा के बाहर क्यों खड़ी रहती और दुसरी तरफ मुझे आश्चर्य था कि वह यहाँ हमारे घर क्यों आई है ?

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