पश्चाताप के आँसु
Paschatap ke Aansu
श्रेणी (Category): लघु कथा
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)
अस्वीकरण
(Disclaimer)
इस कहानि के सभी पात्र और उनके नाम और घटनाएं काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना से कोई भी संबंध नहीं हैं। यह कहानि किसी भी व्यक्ति के नीजि जिन्दगी से प्रेरित नहीं है। यह पुरी तरह से एक काल्पनिक रचना है। यदि किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से समानता पाई जाती है तो ये मात्र एक संयोग होगा।
तरुण अपने दोस्त अभीषेक की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली से बिहार आया हुआ था, शादी एक मंदिर में थी जहां रहने की व्यवस्था भी थी और यह विवाह स्थल वर और वधु दोनो के अपने अपने शहर से बराबर की दुरी पर था । वर और वधु पक्ष को मिला कुल 350 लोगो का जमावडा था ।
पुरे विश्व में महामारी की स्थिति बनी हुई थी जिसका प्रभाव भारत पर भी था, पर शादी की तारिख पहले से तय होने के कारण बगैर किसी बदलाव के वर-वधु पक्ष के द्वारा कार्यक्रम को तय तारिख पर समपन्न करने का निर्णय ले लिया गया । इसका कारण यह भी था की लोगों को इस महामारी के प्रकोप का अंदाज़ा नहीं था । स्थिति कितनी बिगड़ सकती है लोगों को इसका अंदाज़ा बिल्कुल भी नहीं था ।
शादी एक दिन बाद थी, तो सभी लोग पास के बाज़ार में अपने-अपने जरुरत के सामान खरीदने लिए जाने लगे और वहीं लोगों को पता चला की अगले दिन सम्पुर्ण भारत को एक दिन के लिए बंद किया जा रहा है जिसमें सभी लोग अपने अपने घरों पर ही रुकेंगे । इस खबर को सुनने के बावजुद भी लोगों को लगा की शादी में जितने लोगों को आना था वो तो मौजुद ही हैं तो विवाह संपन्न करने बाद जब दुसरे दिन भारत पुन: खुलेगा तो स्थिति को देखते हुए वधु-विदाई करके सभी अपने अपने घरों को लौट जाएंगे ।
सभी लोग मंदिर के बड़े से खुले प्रांगण में अपना समय व्यतित कर रहे थे और तरुण अपने दोस्त अभीषेक से बातें कर रहा था । काफि समय तक बात करने के बाद अभीषेक ने तरुण से कहा - तरुण तुमने काफि लंबा सफर तय किया है इसलिये तुम फ्रेश होकर कुछ खा लो और थोड़ा आराम कर लो ।
अभीषेक तरुण को उसके कमरे का दिशा बता देता है और तरुण अपने कमरे की ओर जाने लगता है तभी कोमल नाम की एक महिला उसे आवाज़ देती है, तरुण और कोमल एक दुसरे को ज़ानते थे । वो दोनो काफि देर तक बातें करते है और फिर तरुण अपने कमरे की बढ़ जाता है और तभी कोमल के पति जिसका नाम प्रतिक है वो आकर कोमल से बात करने लगते है -
प्रतिक - कौन था वो लड़का जिससे तुम अभी बात कर रही थी ?
कोमल (प्रतिक से मज़ाकिये लहज़े में) - क्यों तुम्हें जलन हो रही है ?
प्रतिक - मुझे क्यों जलन होगी भला, बस मै तो ऐसे पुछ रहा था... क्योंकि मैने उसे कभी देखा नहीं ।
कोमल - उसका नाम तरुण है वो संध्य़ा का पुराना बॉयफ्रेंड है ।
प्रतिक - अब ये संध्या कौन है ?
कोमल - तुम सारे मर्द ना डफ़र होते हो, अभीषेक़ की होने वाले दुल्हन की बड़ी बहन है संध्या ।
प्रतिक - ओ हो ... ऐसी बात है ! तो अब तरुण क्या चाहता है ?
कोमल - तरुण एक बार संध्या से मिलना चाहता है ।
प्रतिक - क्यों ?
कोमल - बात ये कि तरुण और संध्या एक दुसरे को चाहते थे, तरुण संध्या से शादी करना चहता था पर उसकी कोई नौकरी नहीं थी और वह किराये के मकान में अपने माता पिता के साथ रहता था तो संध्या को इस बात से परेशानी थी । संध्या के माता पिता ने उसकी शादी एक इंजीनियर से तय कर दी और संध्या ने शादी के लिये हां भी कर दी थी और तरुण से अपना रिश्ता तोड़ लिया पर उसने एक प्रॉमिस किया की वो उसे हमेशा याद रखेगी, कभी भी भुलेगी नहीं । इसलिये तरुण एक बार ऐसे ही संध्या से मिलना चाहता है ।
इतना कह कर कोमल वहां से चली जाती है ।
तरुण कई बार संध्या से मिलने की कोशिश करता रहा पर संध्या तरुण को नज़रअंदाज़ करती रही । तरुण ने सोचा की संध्या अब किसी और की पत्नि है और उसका यह व्यवहार सहज़ और जायज़ भी है । तरुण संध्या से बात करने की कोशिश कर रहा है इसकी भनक संध्या की माँ को लग ज़ाती है और वह तरुण और संध्या के पुराने संबंधों के बारे में जानती है और इसलिये वह तरुण से अकेले में मिल कर उसे काफि डाँट लगाती है और बहुत भला बुरा कहती है ।
अगले दिन शादी बड़ी ही धुम धाम से सम्पन्न हुई और उसके अगले दिन सभी विदाई के लिए तैयार हो ही रहे होते हैं कि वहां के स्थानिय निवासियों के बीच सांप्रदाइक दंगा हो जाता है और अनन-फानन में उस पुरे स्थान पर स्थानिय प्रशासन के द्वारा कर्फ्यु लगा दिया जाता है और वर-वधु दोन पक्षों के 350 लोग वहां फंस जाते है । अगले दो दिनों के बाद कर्फ्यु हटती भी नहीं है कि पुरे भारत में महामारी के वजह से एक महिने का लॉकडाउन घोषित कर दिया जाता है जिससे सभी लोग जहां थे वहीं फंसे रह जाते हैं ।
इसके बाद एक दो दिन तो जैसे तैसे करके लोग अपने खर्चे पर काट लेते है पर असली मुसिबत तो तब शुरु है जब सभी के पास पैसे और खाने पीने के चीज़ें खत्म हो जाती है । लोगों में अफरा तफरी मचने लगती है और जिसका सारा भार संध्या के पिता पर आ जाता है ।
संध्या के पिता के पास भी पैसे खत्म हो जाते है वह संध्या के पति से मदद करने के लिये कहते है पर संध्या के पति सीधे इंकार कर देते है और यह दलील देते हैं कि यह जिम्मेवारी उनकी नहीं है । अभीषेक के पिता भी संध्या के पिता पर दवाब बनाने लगते है और धीरे धीरे सभी लोग लकीर के फकीर की तरह संध्या के पिता पर खाने-पीने के खर्चे का दवाब बनाने लगते है । देखते ही देखते शादी में उपस्थित अपने सम्बन्धी पराये लोगो की तरह व्य्वहार करने लगते है, एक दिन तो तो पार हो जाता है पर अगले दिन दवाब धमकियों और तिरस्कार में बदलने लगते है जिससे संध्या के पिता बहुत ही आहत हो जाते है । संध्या के पुरे परिवार पर मानों बिजली सी गिर पड़ी हो । इतने सारे लोगों के लिये राशन-पानी का खर्च वो भी महिने भर के लिये, कोई करें तो करें भी क्या? यह किसी को समझ में नही आ रहा था ।
किसी भी तरह दो तीन दिन पार हो जाते है फिर संध्या के पिता के पास शादी को सम्पन्न कराने वाले पंडित जी आते है और कहते है कि अब आप लोगों की खाने-पीने के खर्चे की चिंता छोड़ दें क्योकि मंदिर के ट्रस्टी नें यहां पर फंसे सभी लोगों के लिये खाने पिने और सभी ज़रुरी सामान को उपल्बध कराने का अश्वाशन दिया है । संध्या के पिता कहते है कि यह तो बहुत अच्छी खबर है सब परम पिता परमेश्वर की कृपा है । संध्या के पिता मंदिर के ट्रस्टी से मिल कर उन्हें धन्यावाद देने की इच्छा ज़ाहिर करते है तो पंडित जी कहते है कि मंदिर के ट्रस्टी भी अभी खुद कहीं और फंसे है उनसे मिलना संभव नहीं है ।
सभी लोगों के पास यह खबर पहुंचती है और जिससे सभी लोग उत्साहित और खुश हो जाते है । एक से दो दिनों के भीतर ही गाडियों में भर कर 350 लोंगों के राशन और अन्य खाने पीने की वस्तुएं आ जाती हैं, अब सभी लोगों में सौहार्द्र बढने लगता है और दिन आसानी से पार होने लगते है । पर तरुण, ... उसका ध्यान केवल संध्या पर होता है, पर वह संध्या की मां से मिली फटकार की वजह से उससे मिलने की कोशिश नहीं करता और हमेशा संध्या से दुरी बना कर रखता है। कभी-कभी तरुण का सामना संध्या से हो जाता है पर संध्या एन वक्त पर ताने मार कर उसका अपमान करती रहती है और तरुण मुस्कुरा कर संध्या के तानों को नज़र-अंदाज़ करता रहता है ।
देखते ही देखते लॉकडाउन की अवधि समाप्त हो जाती है सभी लोगों के अपने अपने घरों को लौटने का समय आ जाता है। जाने से पहले तरुण संध्य़ा से मिलने की आखरी कोशिश करता है और कोमल के जरिये एक कागज टुकड़े में अपने फोन नम्बर लिख कर उसे कॉल करने को कहता है । कोमल वह नम्बर संध्या को दे देती है और कॉल करने को कहती है पर संध्या उस कागज़ टुकड़े को फाड़ कर फेंक देती है और कहती है कि तरुण मेर गुज़रा हुआ वक्त था और उसको याद रखने की अब कोई वज़ह नहीं है ।
यह बात कोमल तरुण को जाकर बताती है, तरुण दुखी हो जाता है और संध्या को जिस मोबाईल का नम्बर देता है उसे तोड़ कर फेंक देता है और कोमल से कहता है मुझ्से वादा करो की मेरा कोई भी कॉंटेक्ट नम्बर कभी भी संध्या को नहीं दोगी। इतना कह कर तरुण वहां से चला ज़ाता है ।
छ: महिने बीत जाते है संम्पुर्ण देश में महामारी भी खत्म हो जाती है, संध्या अपने माईके पर ही रह रही होती है । सभी एक साथ टी0वी0 पर न्युज़ देख रहे होते है जहां हर ओर भारत के प्रधानमंत्री के तारिफें ही हो रही होती है । तभी घर पर शादी को सम्पन्न कराने वाले पंडित जी का अगमन होता है और सभी पंडित जी को आदर पुर्वक बिठाते हैं । तभी संध्या की माँ बातों बातों में तरुण का जिक्र करती है और उसके बारे में काफि भला बुरा कहती है ।
संध्या की माँ के मुख से तरुण की बुराई सुनकर पंडित जी को क्रोध आ जाता है और वह संध्या की माँ से कहते हैं कि किसी के बारे में बीना जाने ही हमें अपने मन कोई विचार गढने नहीं चाहिये, मुझे यह तो नहीं पता कि आप तरुण से इतनी नफरत क्यों करती है पर मैं इतना तो जानता ही हुँ कि अभी आप बिल्कुल गलत कह रहीं है।
संध्या की माँ को आश्चर्य होता है कि आखिर पंडित जी को हुआ क्या है, वह इतने गुस्से में क्यों है और तरुण को कैसे जानते है ? वह पंडित जी से उनके गुस्से का कारण पुछती है तो पंडित जी बताते है कि जिस इंसान के बारे में आप इतने जहर उगल रहीं हैं असल में आपको उसकी पुजा करनी चाहिये, उसने मुझसे वचन लिया था कि मैं आप सब को इस बारे में कभी भी कुछ भी न बताउं पर उसके बारे में आपकी ऐसी धारना मुझे अपना वचन तोड़ने पर विवश कर रही ।
पंडित जी संध्या की माँ को बताते हैं कि मंदिर में जब संध्या के पिता पर सभी लोगों के खाने -पीने का खर्च उठाने का दवाब बना रहे थे तो तरुण ने मंदिर को अपने कमाई के जमा पैसे दान में दे दिये और तब जाकर मंदिर ने सभी लोगों का खर्च उठाया। इस बात को तरुण किसी पर ज़ाहिर होने देना नही चाहता था पर आपके कठोर शब्दों के कारण मुझे आपको यह सब बताना पड़ा, बस मैं और उसके बारे में ऐसे कठोर शब्द नहीं सुन सकता जिसने मेरी एक महिने तक भुख-प्यास मिटाई हो । ज़रा सोचिये आज के ज़माने में कोई अपना अपने के काम नहीं आता पर उसने अपनी ज़िंदगी भर की कमाई को ही आप सभी के उपर खर्च कर दिया । हो सके तो संध्य़ा के पिता को यह बात मत बताना नहीं तो वह खुद को तरुण के एहसान तले दबा हुआ महसुस करेंगें ।
पंडित जी की बातों को सुनने के बाद संध्या को अफसोस होता है कि जहां वो और उसका पति अपने पिता की सहायता कर नहीं सके वहां तरुण नें उसकी मदद की जबकि बदले में उसने उसका सिर्फ और सिर्फ तिरस्कार ही किया था । संध्या तो पहले ही उसके नम्बर वाले कागज़ के टुकड़े को फाड़ कर फेंक चुकी थी उसने यह सोच कर कोमल को फोन लगाया कि कोमल उसका नम्बर देगी पर कोमल ने भी उसका नम्बर देने से मना कर दिया क्योंकि उसने तरुण से वादा किया था कि वो कभी भी उसका फोन नम्बर संध्या को नही देगी ।
संध्या ने एक बार तरुण से कहा था वह उसे हमेशा याद रखेगी, पर वह उसे गुज़रे हुये वक्त की तरह भुला चुकी थी क्योंकि पहले वह तरुण के प्रेम के कोमल छाँव में थी, पर अब वास्तव में उसका तरुण को भुला देना असंभव हो गया था क्योंकि अब वह तरुण के एहसान के बोझ के तले दब गयी थी ।
संध्या के आँखों से पश्चाताप के आँसु तो निकलते है पर इस पुरी दुनिया में उन आँसुओं की किमत केवल तरुण ही समझ सकता था उसके बगैर वो महज़ आँसु ही थे जिनका कोई मोल नहीं था ।
समाप्त ।
आपको यह कहानि कैसी लगी हमें कमेंट मे लिख कर जरुर बताएं, ताकि हम और भी प्रेरणादायक कहानियां आपके समक्ष लाते रहें ।
धन्यवाद ।
ReplyDeleteVery nice story also read Read zadui chasma best story
हेलो आपका ब्लॉग पोस्ट बहुत अच्छा लिखा गया है। मेरे पास यूट्यूब कनवर्टर वेबसाइट है। अगर कोई भी तेज़ ऑडियो यूट्यूब डाउनलोडर करना चाहता है तो वह वेबसाइट का उपयोग कर सकता है
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