The Boy Friend Part - 6

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द बॉयफ्रेंड (भाग – 6)


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शिर्षक (Title) - द बॉयफ्रेंड (भाग – 6)।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा, रोमांचक कथा (Love Story, Thriller)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


The_Boy_Friend


बहादुर – भाई मुझे माफ कर दे...वो...म्म.. मैंने पीछे से तुम्हें हकला... कहा था। भाई मेरे से दोस्ती करोगे ? विश्वजीत (गुस्से में उंगली दिखाकर) – एक शर्त पर... त..त्...तु मुझे...हकला...(एकाएक मुस्कुराते हुए) नाम से ही बुलाएगा...हा हा हा...।

दोनो एक दुसरे को गले लगा कर जोर जोर से हसने लगते है। अगले दिन विद्यालय अपने समय पर खुल जाता है और सभी विद्यार्थी समय से पहुँच जाते है। आज विश्वजीत कुछ ज्यादा ही बन ठन कर आया, पीछे उसका दोस्त बहादुर उसे आवाज़ लगाता है – ए विश्वजीत भाई... रुक न...।

विश्वजीत – अ...अ...अबे, म्म....मैंने तुझे कहा था न... मुझे हकला ही बुलाना...।
बहादुर – क्यों मेरी सुबह सुबह ले रहा यार...
विश्वजीत – ल...ले नहीं रहा हुँ दे हरा हुँ...।
बहादुर – क्या ?
विश्वजीत – टिप...।
बहादुर – ये क्या होता है...?
विश्वजीत – ब...ब...बड़े होटल में जब खाना खाते हैं त...तो वहां जो हमें क्ख्...खाना परोसता है उसे खुश होकर कुछ पैसे देते है उसे ही टिप बोलते है।
बहादुर – ए इसी को टिप बोलते है...अरे भाए तु तो अपना ही भाई निकला रे...मैं भी छगन की दुकान पर चाय पीता हुँ ना, तो उसके बच्चे को चार आने, आठ आने दे दिया करता हुँ कंचे खरिदने के लिए...वैसे तु मुझे कोई टिप दे रहा था... क..अ क्या ...है वो?

विश्वजीत – ट..टिप ये है कि दोस्ती में कुछ लेना देना नहीं होता है ब...बस निभाना होता है।
बहादुर – अच्छा...तो मैं भी तुम्हे एक टिप्प देता हुँ,... तुने उस लड़की को देखा जिसका नाम आशि है? कल तुझे बड़े ध्यान से देख रही थी।
विश्वजीत – अच्छा... त..त..तो इसमें टिप वाली बात क्या है?
बहादुर – मैंने न... मन ही मन में...
विश्वजीत – हां ...त..त्त..तुने क्या ?
बहादुर – मैंने न...मन ही मन में उसे अपना...
विश्वजीत – अ..अ..अबे आगे भी बोलेगा?
बहादुर - मैंने न मन ही मन में उसे अपना भाभी मान लिया है...। तु कॉलेज़ खतम कर, भाभी को सब कुछ बता दे ?
विश्वजीत - क्या बता दुं ?
बहादुर – यही की तु उससे प्यार करता है और शादी करना चाहता है।

तभी कॉलेज़ की घंटी बज उठती है , सारे लोग अपनी अपनी कक्षा की ओर बढ़ते है और कक्षा शुरु हो जाती है। विश्वजीत और बहादुर साथ साथ अपनी कक्षा की ओर बातें करते हुए बढ़ते है। कक्षा में प्रवेश करते ही विश्वजीत बहादुर से कहता है – य...य्य...ये बात दुबारा कहना भी मत, साले वो मंत्री की बेटी है, तु मुझे मरवायेगा क्या?

बहादुर – अबे, तु दोस्त के लिए इतना नहीं कर सकता क्या...साला डरपोक है तु...है न ?
विश्वजीत – म...म...मैं डरपोक नहीं हुँ।
बहादुर – तो...?
विश्वजीत – त..त...तो क्या ...ब...ब...बस थोडा सा डर लगता है, पर तु क्या बहुत बड़ा बहादुर है?
बहादुर – और नहीं तो क्या... मेरा नाम ही बहादुर है।
विश्वजीत – अ..अ.अच्छा, .... ये बता...तेरा नाम बहादुर किसने रखा?
बहादुर – मां-बाउजी ने...।
विश्वजीत – अच्छा....साले...क्या तु पैदा होते समय रोने के बजाए जागते रहो चिल्ला रहा था क्या ?(दोनो हंसते हुए बाते करते कक्षा में चले जाते हैं।)


शिक्षका प्रवेश करते है और लेक्चर शुरु करते है। कुछ घंटों के बाद कॉलेज से छुट्टी होती है, विश्वजीत और बहादुर दोनो साथ साथ कक्षा से बातें करते हुए निकलते हैं।

विश्वजीत को बहादुर के चेहरे पर पसीना आता दिखता है, यह देख कर वो बहादुर से पुछता है -
 विश्वजीत - बहादुर तेरी तबियत तो ठीक है ना ?
बहादुर - हाँ...,
विश्वजीत - नहीं तुझे पसीने आ रहे हैं ?... तेरा चेहरा पसीने ढका हुआ है,... अभी तो ऐसी गर्मी भी नहीं है ?
बहादुर - अच्छा ... (बहादुर बोलते हुए अपनी जेब से रुमाल निकालता है और अपने चेहरे को पोंछता है।)

रुमाल निकालते समय बहादुर की जेब से एक प्लाटिक की छोटी से सफेद पुड़िया जमीन पर ग़िरती है, यह विश्वजीत देख लेता है और उस पुड़िया को उठाकर पुछता है -

विश्वजीत - ये क्या है...?
बहादुर - कुछ नहीं बस ऐसे ही...(बहादुर घबरा कर विश्वजीत हाथ से वो पुड़िया जल्दी से छीन लेता है और सर झुका कर फिर कहता है...) अरे बस...क्क..क...कोई खास काम की चीज़ नहीं है...जाने दे।

विश्वजीत बहादुर को घुर कर देखता है और वहां से बिना कुछ बोले चला जाता है, यह देख बहादुर थोड़ा हैरान हो जाता है और जाते हुए विश्वजीत को रोक भी नहीं पाता है।

दो-तीन दिन तक विश्वजीत कॉलेज आता है बहादुर से बात नहीं करता है। बहादुर को भी बड़ी टेंशन होने लगती है कि विश्वजीत उससे बात नहीं कर रहा था। एक दिन विश्वजीत कॉलेज़ की एक खाली कक्षा में अकेले बैठा होता है। बहादुर विश्वजीत को ढ़ुंढ़ता हुआ उसी कक्षा में पहुचता है, कक्षा में विश्वजीत के आलावा कोई नहीं होता है पर कक्षा के अंदर से बातें करने की आवाज आ रहीं होती है।

बहादुर चुपके से झाँक कर देखता है तो वो आश्चर्यचकित हो जाता है। वो देखता है कि विश्वजीत एक खिलौने टेडी बियर से बातें कर रहा होता है। ध्यान से सुनने पर बहादुर को समझ में आता है कि वो बहादुर के ही बारे में कुछ कहा रहा था। बहादुर एकाएक अंदर प्रवेश करता है और यह देख कर विश्वजीत बिल्कुल शांत स्वाभव में बहादुर की तरफ एक टकटकी मुद्रा में हैरानी से देखता है। फिर अपनी आँखें नीची कर लेता है।

बहादुर - क्या बात है दो-तीन दिन हो गये, तुने मुझसे बात नहीं की कोई समस्या है?कॉलेज आकर बिना मिले चला जाता है ?

विश्वजीत - त..त...तेरे हर सवाल का जवाब मैं दुंगा...बस मेरे एक सवाल का जवाब दे...।
बहादुर - क्या पुछना चाहते हो ?
विश्वजीत - उ ...उ...उस प्लाटिक की पुड़िया में क्या था ?
बहादुर - क्या करोगे जान कर ?
विश्वजीत - स..स्...सवाल का जवाब सवाल नहीं होता...क्या था उस पुड़िया में ?
बहादुर - जाने दे न यार ... क्यों टेंशन में है... बोला ना कुछ खास नहीं था।
विश्वजीत - म ... म्म ...मुझे अफसोस रहेगा...
बहादुर - किस बात के लिए...?
विश्वजीत - ह..ह...हमारी दोस्ती सिर्फ इतने ही दिनों की थी...
बहादुर - ए भाए, तु ऐसा किसलिए कह रहा है...बता न क्या बात है...?
विश्वजीत - ज..ज्...जाने दे ना यार... क्यों टेंशन में... तेरा नया दोस्त उस पुड़िया के अंदर है ना...। उस दोस्त का नाम तो तु जानता ही होगा ?
बहादुर - हाँ (थोडा रुक कर और अपना सिर नीचे करके)...हिरोइन ।
विश्वजीत - ह..ह...हिरोइन नहीं... हेरोईन । तेरा नया दोस्त तुझे मुबारक ।



इतना कह कर विश्वजीत खडा होता है और वहां से जाने लगता है। ये देख कर बहादुर विश्वजीत के पैरों पर गिर जाता है और उसके पाँव को कस कर लिपट जाता है।

विश्वजीत - ज..ज्ज..जाने दो मुझे...छोड़ो।

विश्वजीत अपने पैर छुड़ा कर जाने लगता है...पर बहादुर उसके के पीछे भागता है उसे जोर जोर से पुकारता है और कहता है -

बहादुर - (जोर जोर से रोकर और चिल्लाते हुए) ए भाए ... वो मेरा नया दोस्त नहीं, पुराना दुश्मन है, ए सुन ना मेरी बात...... ऐसे अकेला छोड़ के मत जा मुझे यार,...वो धीरे धीरे मुझे उस रात के अंधेरे में ले जा रहा है जहाँ सुबह नहीं होती है यार...। तुने कहा था न साथी बनेगा तु उन लोगों जो पीछे छुट चुके हैं,... तो फिर क्यों मुझे क्यों छोड़ रहा है ?

अचानक विश्वजीत रुक जाता है उसे अपनी कही हुई बात याद आने लगती है,... बहादुर दौड़ता हुआ विश्वजीत के पास आता है और उसके सामने घुटनों के बल बैठ कर फुट फुट कर रोने लगता है।

बहादुर - (फुट फुट कर रोते हुए) मैंने बहुत कोशिश थी यार, पर छुटता ही नहीं है... ये नशा । ऐसा लगता है कि मैं अंधकार के सागर में डुबता जा रहा हुँ जिसका कोई किनारा नहीं और ये मेरे अंदर का ऐसा दुश्मन है जिसके सामने मैं एक कायर की तरह खुद को झुका देता हुँ। जब पहली बार तेरी बात सुनी तो लगा की तु मेरी मदद करेगा इसीलिए तेरे से दोस्ती भी की, पर साला मेरे जैसों की मदद करनें कोई भी नहीं आता, सभी छोड़ देते है...।

विश्वजीत बहादुर के दोनो बाजुओं पकड़ कर उसे खड़ा करता है और उसके आँसु पोंछते हुए कहता है - विश्वजीत - साले...खुद को कायर कहने पहले,... तु ये कैसे भुल गया की तेरे मां-बाउजी नें तेरा नाम बहादुर रखा है।

यह कह कर विश्वजीत बहादुर को गले लगा लेता है और कहता है -

विश्वजीत - अरे मैं तुझे छोड़ कर थोडी न जा था...।
बहादुर (विश्वजीत की तरफ देख कर) - तो...?
विश्वजीत - मैं तो देख रहा था कि तुझे ये नशा छोडनी है या हमारी दोस्ती ।
बहादुर - नहीं यार... कभी नहीं... बस मुझे तेरी दोस्ती चाहिए और इस नशे से आजादी ।
विश्वजीत - तु टेंशन न ले, अब तेरा दुश्मन मेरा भी दुश्मन, तो चल, साथ मिल कर हराते है साले को ।


कहानी आगे जारी रहेगी...
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