The Boy Friend Part - 2

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द बॉयफ्रेंड (भाग – 2)


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शिर्षक (Title) - द बॉयफ्रेंड (भाग – 2)।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा, रोमांचक कथा (Love Story, Thriller)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


The_Boy_Friend


आशि – (उस कमरे के बारे में पुछते हुए) इस कमरे में क्या है?
डॉक्टर – इस कमरे में एक पेशेंट है जिस पर पिछले बीस सालों से एक शोध चल रहा है। ये काफि क्रिटिकल केस है। ये कमरा पुरी तरह आर्मी और डिफेंस के साइंटिस्ट, डॉक्टरस और इकेक्ट्रॉनिक्स इंजीनिर्यस को डेडीकेटेड है। यहां हमे भी जाने की इजाजत नहीं है। कल इस पेशेंट का आखरी दिन है।

आशि – आखरी दिन है..पर क्यों?
डॉक्टर – ये काफि कॉंफिडेंशियल मैटर है। बस हमें इतना पता है कि यहाँ आर्मी के डॉक्टर्स इस पेशेंट की न्युरोलोजिकल टेस्ट करते है और रिपोर्ट अनालाईज़ करते है। एक डीज़िटल इलेक्ट्रॉनोक्स कम्पनी है “न्युरोमैक्स”। डॉक्टर्स सारे टेस्ट के रिपोर्ट से मिलेने वाली डाटा को इसी कम्पनी को देते है। न्युरोमैक्स का कहना है कि उन्हें जितने भी डाटा चाहिए थे मिल चुके। अब इस पेशेंट को रखने से सिर्फ पैसे की बरबादी होगी... तो कल इसके लाईफ सप्पोर्ट सिस्टम्स को हटा दिया जायेगा... और वैसे भी इसकी हृदय की मांसपेशिया बहुत कमज़ोर हो चुकीं होंगीं... अब कोई उम्मीद भी नहीं।

आशि – (दुखी होकर) पर ये गलत है...आप एक डॉक्टर होकर ऐसा कैसे होने दे सकते है?
डॉक्टर – मैडम मै एक डॉक्टर हूँ पर इतना समझता हुँ कि कुछ बातें गलत और सही परे होंती हैं। इस पेशेंट के शोध का कारण है न्युरोलोजिकल साईंस में नयी खोज करना, जो भविष्य में दुसरे मरीज़ों के भी काम में आ सकती है, जिसे हम सही मान सकते है पर उसके उलट हमनें 20 साल से इसकी आत्मा को इसके शरीर में कैद कर रखा है क्या ये गलत नहीं? मैं सिर्फ एक बार इस कमरे के अंदर गया हुँ और मेरा ध्यान दिवार पर चिपके एक कागज़ के टुकड़े ने खींचा जिस पर लिखा था ‘जिंदगी में सफलता का असली मतलब दुसरों के काम आना होता है।‘

डॉक्टर के आखरी बात सुन कर आशि किसी और के ख्याल में खो गई।
अभिषेक – (आशि के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए) आशि,... तुम किन ख्यालों में खो गई?
आशि – नहीं, बस किसी की याद आ गई।

फिर सभी लोग वहां से आगे बढ़ जाते है, डॉक्टर आशि को पुरा हॉस्पिटल दिखा देते है और उसके बाद आशि नये वार्ड के उद्घाटन के लिए रिबन काटती है और फिर कुछ देर के बाद हॉस्पिटल से वापस लौट जाती है और कुछ देर में प्रेस कॉंफ्रेस के लिए कॉंफ्रेस हॉल पहुंचती है।



अभिषेक – आशि...मीडिया वालों को थोडा सोच समझ कर बोलना।
आशि – (गुस्से में) तो तुम जाकर बोल दो...?
अभिषेक – नहीं नहीं ... सॉरी... इट्स ओ0के0
आशि – आर यु श्योर?
अभिषेक – या ... फाईन ...

आशि जैसे ही कॉंफ्रेस हॉल में पहुंचती है सभी मीडिया वाले खड़े हो जाते है।
आशि – (मज़ाकिया लहज़े में) आप सभी खड़े क्यों है?

भीड़ में से एक युवा रिपोर्टर आगे कर कहता है...
रिपोर्टर – आपने अट्टारी के युवा शक्ति के लिए जो कार्य किया है वो सम्मानजनक है इसलिए हम सभी आपके सम्मान में खड़े हैं। कृपया पहले आप स्थान ग्रहण किजीए।
आशि – धन्यवाद!... पर यह कार्य आपके नि:स्वार्थ सहयोग के बिना सम्भव ही नहीं था इसीलिए मैं और मेरा रोम रोम भी आपके  सम्मान में खड़ा है।

आशि के इतना कहते ही पुरा कॉंफ्रेंस हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज़ उठता है। सभी अपने अपने स्थान पर बैठ जाते है और प्रेस कॉंफ्रेंस शुरु होता है।

अभिषेक – (माइक पर) आप सभी से अनुरोध है कि एक एक करके सवाल पुछें।
एक जर्नलिस्ट खड़े होकर – आशि मैम... इस कॉलेज़ की जो सबसे गंभीर समस्या है, वह है कॉलेज़ की ज़मीन की लीज़, जो अब खत्म हो चुकी है। हमने सुना ज़मीन पर मालिकाना हक़ रखने वाले लोग अब इस लीज़ को बढाना नहीं चाहते है।
आशि – हाँ, सुना तो आपने सही पर हमने अभी तक उन लोंगो से इस बारे में बात नहीं की है हम ज्ल्दी ही इस विषय पर चर्चा करने के लिए एक मीटिंग करने वाले हैं और मीटिंग के लिए संदेश उन्हें भेजा गया है और उनका रवैया हमारी तरफ नर्म है वो मीटिंग के लिए भी तैयार हैं।

दुसरा जर्नलिस्ट – मैम...अगर उन्होंने लीज़ आगे बढाने से इंकार कर दिया तो...?
आशि – देखिये, हम पहले से किसी भी बात को तय नहीं मान रहे है अगर हम पहले ही यह सोच लेंगे कि उनकी फैसला क्या होगा, तो फिर बात करने का क्या अर्थ होगा ? पर हमें पुरी उम्मीद है जो भी होगा उसमे सबका भला होगा।

तीसरा जर्नलिस्ट – हमने सुना है कि, आप इन हालातों में भी विदेश यात्रा पर जाना चाहती हैं ... क्या यह सत्य है? आशि – (थोड़ी देर रूक कर) हाँ...।

इतना सुनते ही लोगों में भुनभुनाहट शुरु हो जाती है...तभी उनमें से एक और पत्रकार खड़ा होता है और कहता है... पत्रकार – मैम...क्या आपको ये फैसला गैर जिम्मेदाराना नहीं लगता है?
आशि – लगता तो है, पर मेरा जाना भी बहुत जरुरी है। समझ लिजिए ये मेरी मजबुरी है। मेरे गैरहाज़रि पर आभिषेक सारे काम को संभाल लेंगे। मुझे यह विश्वास है।

पत्रकार – मैम...ऐसा क्या है, जो आपका जाना इतना जरुरी है? किसी से मिलने जा रहीं है आप ?
आशि – हाँ....(थोड़ी देर रूक कर) अपने बॉयफ्रेंड से।

इतना सुनते ही लोगों में फिर भुनभुनाहट शुरु हो जाती है... सभी पत्रकार एक दुसरे की देख कर धीमी आवाज़ में सवाल-जवाब करना शुरु कर देते है कुछ देर तक यही सब कुछ चलता रहता है। फिर एक पत्रकार पुछता है।



पत्रकार – मैम...आपने अभी तक शादी नहीं कि क्या उसकी वजह वही है?
आशि – हां...मेरी उससे पहली और आखरी मुलाकात इसी कॉलेज़ में ही हुई थी और तब से मै उसके इंतज़ार में हुँ, पुरे बीस साल बीत गये पर वो आया ही नहीं।
पत्रकार – आपके इस राज़ के बारे में तो किसी को नहीं पता था और इसे आपने खुद खोल दिया...क्या अपनी कहानि इस लाईव प्रेस कॉंफेंस में हमें बताएंगी?

आशि – अगर मेरी बिती हुई जिंदगी के बारे में जान कर किसी को फायदा होता है तो क्यों नहीं... पर मुझे नहीं लगता है कि मेरी कहानि सुन कर किसी को फायदा होगा?

पत्रकार – आपने ही कहा था कि हम पहले से किसी बात को तय नहीं मान सकते है।
आशि – हाँ... पर शुरु कहाँ से करुं समझ में नहीं आ रहा।
पत्रकार – मैम एक गुजारिश है... शुरु से शुरु कीजिए।
आशि – हाँ ये बेहतर है... क्योंकि मेरी और उसकी कहानि इसी कॉलेज़ के वजह से ही बनी, इसलिए इस कॉलेज की दास्तान भी सुनाई ही जानी चाहिए। ये कॉलेज़ एक विचार था, एक जज़्बा था, एक जुनुन था दो दोस्तों के मन में।

मेरे पिता श्री जानकी नाथ माथुर और श्री बलराज चतुर्वेदी दोनो बचपन से जिगरी दोस्त थे। ऐसा कोई भी काम नहीं था जो एक करें और दुसरा न करे। पढाई हो या खेल, खाना हो या सोना और शरारत हो या उसकी सज़ा, दोनो हर वक्त एक दुसरे का साथ देते।

दोनो के माता पिता बॉर्डर पर हुए एक आतंकवादी हमले में मारे गये। गरिबी की हालत तो थी ही पर उस पर से दोनो के माता पिता का गुज़र जाने की घटना, दोनो को एक दुसरे के जीने का सहारा बना गया। अब उनकी दोस्ती दो भाईयों के स्नेह से भी ज्यादा हो चुकी थी। अगर शाम तक सिर्फ एक जन के खाने का इंतजाम हो पाता तो वो खाना किसी तीसरे जरुरतमंद को देकर दोनो भुखे सो जाते।

मेरे पिता जानकी नाथ माथुर को सभी चीज़ें मनमुताबिक चाहिए थी, वे बचपन से ही हठी थे एक बार जो चीज ठान ली तो बस ठान ली। उन्हें जो भी चाहिए तो पुरा चाहिए आधा अधुरा नहीं। वहीं बलराज चाचा बहुत ही शांत स्वाभाव के थे किसी के बारे में कोई फैसले पर वो तब तक नहीं पहुँचते जब तक वो संतुष्ट न हों जाएं।

वक्त कटता गया और दोनो की समझदारी बढ़ती गई दोनो बड़े हुए और् उनके साथ साथ गाँव के अन्य युवा भी बडे हुए। गाँव के बस्ती से महज़ तीन से चार किलोमीटर की दुरी पर भारत-पाकिस्तान का बॉर्डर शुरु हो जाता, जो ‘नो मेंस लेंड’ था।




कहानी आगे जारी रहेगी...
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