The Boy Friend Part - 3

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द बॉयफ्रेंड (भाग – 3)


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शिर्षक (Title) - द बॉयफ्रेंड (भाग – 3)।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा, रोमांचक कथा (Love Story, Thriller)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


The_Boy_Friend



वक्त कटता गया और दोनो की समझदारी बढ़ती गई दोनो बड़े हुए और् उनके साथ साथ गाँव के अन्य युवा भी बडे हुए। गाँव के बस्ती से महज़ तीन से चार किलोमीटर की दुरी पर भारत-पाकिस्तान का बॉर्डर शुरु हो जाता, जो ‘नो मेंस लेंड’ था।

बॉर्डर पार से नशीले पदार्थों की तस्करी होती थी। इसमें कई बड़े पॉलिटिशियन और बड़ी हस्तियां शामिल थे। इसलिए इस समस्या से निजात पाना मुश्किल था।

जब दोनो बड़े हुए तो दोनो ने मिल कर एक संकल्प लिया कि, चाहे जो भी हो नशीले पदार्थों की तस्करी और अट्टारी के युवा की जिंदगी बरबाद होने से रोकना है। मेरे पिता जानकी नाथ माथुर इसी कारण पॉलिटिक्स के क्षेत्र में चले गये और बलराज चाचा वहीं गाँव में रुक कर अपनी पढाई करते और युवाओं को नशा से मुक्ति के लिए प्रेरित भी करते।

समय बितता गया, मेरे पिता एक बड़े पॉलिटिशियन बन गये और गाँव को छोड़ कर शहर चले गये और बलराज चाचा गाँव में रह कर उस गाँव के मुखिया बन गये।

लगभग 19 साल बाद

जानकी नाथ माथुर अब, डिपार्टमेंट ऑफ हाईयर एजुकेशन एम0एच0आर0डी0 के मंत्री बन गये थे, और  उस वक्त बलराज चाचा खुद की बनाई हुई एक छोटी सी पाठशाला में गाँव के बच्चों को पढाते थे। एक दिन बलराज चाचा बच्चों पढ़ा रहे थे, तभी पीछे किसी के कदमों की आहट आई और बलराज ने बिना देखे उस शख्स को पहचान लिया और कहा –

बलराज – मुझे लगा कि तुम मुझे भुल गये हो पर शायद मैं ग़लत था। जानकी नाथ माथुर – मैं तुम्हें कभी नहीं भुला पर तुमने मेरी खोज़ खबर लेने की ज़हमत नहीं की।

इतना कहते ही दोनो एक दुसरे को गले से लगा लेते है। फिर बैठ आराम से घंटों एक दुसरे बातें करते है, अपना सुख-दुख बांटते है।

बलराज – भाभी जी और आशि बिटिया कैसी हैं? जानकी नाथ माथुर – तेरी भाभी जी ठीक है, तु तो जानता है मैं कितना व्यस्त रहता हूँ, तेरे बारे में जब भी बात करता था तो वो कहती थी, की पता नहीं कब तुम्हें देख पायेगी और आशि लंदन गयी है अपनी पढाई पुरी करने। यहां हमेशा किसी न किसी कारण से उस पर खतरा बना रहता था इसलिए उसे लंदन भेज दिया।

बलराज चाचा – तो कभी भाभी को इस गरीब की कुटिया में ले आओ। यहां भी कोई कमी नहीं होगी उन्हें। जानकी नाथ माथुर – अरे नहीं यार, तु भी कैसी बात करता है, यहां आकर तो अपनी सम्पुर्णता अनुभव होता है। यहाँ कमी कैसी? सच में तेरी याद बहुत आती थी।

इतना कह कर दोनो खुले खेतों की लहलहाती फसल की ओर बढ़ जाते है।



जानकी नाथ माथुर – (आनन्दमयी होकर) वाह ! अपने गाँव की मिट्टी की खुशबु... लाजवाब...क्या कहने...इन नज़ारों को देखने को तरस गई थी आँखे।...(चारो तरफ देखते हुए) बलराज याद तुम्हें, हमने क्या संकल्प लिया था, कि इस मिट्टी में कभी नशिली दवाओं का जहर नहीं घुलने देंगें। उस वक्त हमारे हाथ बंधे थे पर आज नहीं, ... आज जितने ताकतवर वो है उतनें ही हम।
बलराज – तुम करना क्या चाहते हो? जानकी नाथ माथुर – यहां मैं छोटे बच्चों के लिए स्कुल और युवाओं के लिए एक कॉलेज खुलावाना चाहता हुँ।
बलराज – सोच तो अच्छी है पर क्या सरकार हमें अनुमति देगी। इस गाँव से 4 कि0मी0 दुर पर ही ‘नो मेंस लेंड है’।

जानकी नाथ माथुर – उसकी चिंता मुझे करनी है, पर तुमसे मुझे एक बहुत ही बडी और महत्व्पुर्ण मदद चाहिए। इस गाँव में एक बड़ी ज़मीन चाहिए, जहां स्कुल और कॉलेज़ की केम्पस बनाई जा सके।
बलराज – (बलराज ने मुस्कुराते हुए जानकी नाथ माथुर कंधे पर हाथ रखा और कहा) बस, इतनी सी बात? चल कुछ खा ले फिर सोचते है कि क्या और कैसे करना है।

अगली सुबह बलराज और जानकी नाथ माथुर दोनो हरेराम सिंह नाम के एक ज़मीनदार से मिलते है और अपने योजना बताते है। हरेराम सिंह नाम  की जमीन बहुत ही अच्छी थी, इसीलिए वो सबसे पहले उन्हीं पास जाते है, पर ज़मीनदार हरेराम सिंह राजी नहीं होता है वो लोग खाली हाथ वापस लौट जाते है।

दोनो गाँव में कई लोगों के पास गये पर किसी ने कहा की जमींन पर खेती करनी है और किसी को अपना घर बनाना था पर सच था की नशिले दवाओं की तस्करी में सभी हिस्सेदार थे इसीलिए कोई भी वहां के नेताओं से उलझना नहीं चाहता था।

ऐसा लग रहा था कि किस्म्त के सभी दरवाज़े बंद हो गये है कोई उम्मीद नहीं नज़र आ रही थी, तभी एक खबर आई कि हरेराम सिंह नाम के जमीनदार जिसके पास सबसे अच्छी ज़मीन थी उसका एकलौता बेटा ‘हेरोईन’ का ज्यादा नशा करके बिमार हो गया और उसे शहर के बड़े हॉस्पिटल में भरती कराने के लिए के जाया गया है।

ये खबर सुनते ही दोनो शहर की ओर निकल पड़े और हॉस्पिटल पहुँचे। जानकी नाथ माथुर ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके समय पर सब कुछ नियंत्रण में ले लिया और हरेराम सिंह का बेटा बच गया। साथ ही उसे अपनी गलती का भी एहसास हुआ और वो अपनी ज़मीन भी लीज़ पर देने को तैयार हो गया।

बस अब सरकार से अनुमति की ज़रुरत थी, उसकी व्यवस्था भी जानकी नाथ माथुर ने अपने दम पर करा लिया।
और कुछ दिनों बाद ही जमींन पर स्कुल और कॉलेज़ का शिलान्यास भी हो गया। धीरे धीरे यह खबर मीडिया में आग की तरह फैलने लगी और मीडिया ने अपना भरपुर योगदान दिया।

एक तरफ इस कार्य की चारों ओर सराहना हो रही थी और दुसरी तरफ जिन लोगों को इससे नुकसान होने वाला था वो चुप बैठ नहीं सकते थे, इसलिए वे लोग जानकी नाथ माथुर को निशाना बनाने लगे और उन पर स्कुल और कॉलेज़ बनाने के बहाने घोटाले का आरोप लगाने लगे। वो गाँव के लोगों को भी इकट्ठा करके जानकी नाथ माथुर के खिलाफ भड़काते और जानकी नाथ माथुर का विरोध करने को भी उकसाते।

आये दिन प्रेस रिलिज़ और कॉंफ्रेंस में जानकी नाथ माथुर के अट्टारी शिक्षा योजना की चर्चा होने लगी। इस बीच बलराज भी गाँव जाकर स्कुल और कॉलेज़ के फायदे के बारे में बताते और उन्हें आश्वासन देते कि उनके बच्चे भी एक दिन पढ़ लिख कर जानकी नाथ माथुर जैसे बड़े इंसान बन सकते है।


एक दिन यही कार्य करके बलराज और जानकी नाथ माथुर वापस लौट रहे थे, जानकी नाथ माथुर के साथ बॉडीगार्ड भी थे, तभी कुछ बदमाशों ने सभी को घेर लिया और उन पर हमला कर दिया। बदमाशों से सामना करने के दौरान बलराज जानकी नाथ माथुर की जान बचाने के लिए बीच में आ जाते हैं और बुरी तरह ज़ख्मी हो जाते है। सारे बदमाश भाग जाते है और बलराज को तुरंत ही अस्पताल ले जाया जाता है, समय से अस्पताल पहुंच जाने के कारण वो खतरे से बाहर हो जाते हैं।

देखते ही देखते स्कुल की इमारत खड़ी हो जाती है और स्कुल की शुरुआत का दिन भी आ जाता है। स्कुल में दाखिले के लिए बच्चों की भीड़ और कॉलेज़ में दाखिले के लिए युवाओं की भी लगी रहती है। इस मौके पर स्कुल के उदघाटन के रिबन काटने के लिए किसी बड़े नेता नहीं बल्कि बलराज को चुना जाता है।

जानकी नाथ माथुर – बलराज, इस विद्यालय का उदघाटन तुम करोगे। बलराज – जानकी नाथ तुम एक बात भुल रहें हम जब तक साथ रहे तब तक हमनें कोई काम अकेले नहीं किया तो आज कैसे? हम दोनो मिल कर इस विद्यालय का उदघाटन करेंगें।

जैसे ही बलराज और जानकी नाथ माथुर विद्यालय के उदघाटन के लिए रिबन काटने आगे जाते है कि तभी उन पर हमला होता है।




कहानी आगे जारी रहेगी...
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