The Boy Friend Part - 5

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द बॉयफ्रेंड (भाग – 5)


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शिर्षक (Title) - द बॉयफ्रेंड (भाग – 5)।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा, रोमांचक कथा (Love Story, Thriller)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)


The_Boy_Friend


जानकि नाथ माथुर कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहते थे इसीलिए वो स्पेशल बैटल फिल्ड स्नाईपर कमांडोज़ की मदद लेते है। इन कमांडोज़ की टीम का नाम था ‘ट्विस्टर ट्वींस’। ट्विस्टर ट्वींस स्पेशल बैटल फिल्ड स्नाईपरस की खास बात ये होती है कि ये किसी भी मिशन में खुद को छुपा कर रखते है। ये एक अंडरकवर स्नाईपरस कमांडोज़ की टीम होती है और जोड़े में काम करते है।

कुछ महिनों के बाद कई विधार्थी स्कुल और कॉलेज़ में अपना नामांकन करवा लेते है। उस स्थान का महौल बिल्कुल बदल जाता है और आस पास के भी गांव से कई बच्चे और युवा आने लगते है पर उनमें सबसे अलग आशि दिखती है और हो भी क्युं न। आशि एक हसीन, जवान और दिखने में बेहद खुबसुरत लड़की है।

कॉलेज का पहला दिन शुरु होता है और शुरु दिन से ही आशि सभी लडकों की नजर में रहने लगती है, कुछ नीडर लड़के आशि से दोस्ती करने के लिए हाथ बढाते तो कुछ दुर से ही देख कर आहें भरते। आशि सभी के साथ हसती  बोलती, सभी खुश थे।

माहौल तो ऐसा था कि जैसे वहां कोई मेला लगा हो। गाँव के अन्य लोग भी कहां कम थे उन्होंने भी कॉलेज़ के केम्पस के बाहर चाट पकौड़े की दुकान लगा ली। यह देख कर ग्रामिणों को भी हल्का सा एहसास हुआ कि यह विद्यालय न केवल शिक्षा का उजाला लेकर ही नहीं बल्कि ढेर सारी खुशियां भी लाया है।

विद्यालय में न केवल युवा बल्कि बहुत से विधार्थी ऐसे होते है जिनकी उम्र एक युवा से ज्यादा होती है। एक बात जो सारे विधार्थियों से छुपाई जाती है की आर्मी के कई जवान भी कॉलेज़ पढाई कर रहे होते है जो केवल विधार्थीयों की सुरक्षा के लिए होते है। विद्यालय के बाहर भी सेना के ज़वानों को तैनात किया जाता है। विद्यालय को देखने से ऐसा प्रतित होता है यह कोई सुरक्षित दुर्ग (किला) है जिसके बाहर कड़ी सुरक्षा में देश के बहादुर जवान खड़े है।



घंटी बजती है और कक्षा भी आरम्भ होती है।

सारे लोग अपनी-अपनी कक्षा में चले जाते है। आशि भी अपनी कक्षा में जाती है और कुछ समय के बाद एक शिक्षक का प्रवेश होता है। शिक्षक अपने साथ कुछ पुस्तिका लाते और मेज़ पर रखते है और सारे विधार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहते है – ‘मेरा नाम सुर्यप्रकाश है और मैं साहित्य का शिक्षक हूँ।’

सारे लोग खड़े होकर – प्रणाम सर....।

सुर्यप्रकाश – बैठ जाओ...। इससे पहले मैं आज की कक्षा का शुभारंभ करूँ, ... मैं आप सभी का नाम जानना चाहुंगा।

सारे लोग बारी बारी से खड़े होकर अपना नाम बताते जाते है और कुछ देर बाद यह सिलसिला खत्म जाता है।
सुर्यप्रकाश – बहुत अच्छे।... बच्चों आज से आप अपने जीवन का एक नया सफर शुरु करने जा रहे है। मेरा मश्वरा है कि खुद के भविष्य के बारे में सोचते हुए अपने जीवन में एक नया लक्ष्य तय करो और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए खुब मेहनत करो। रास्ते में कोई भी अड़चन आये तो उसे पार करने का साहस खुद के अंदर पैदा करों और खुब तरक्की करो... और जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करो...

उनका सम्बोधन करिब पाँच मिनटों के तक चलता है।

इसके बाद सुर्यप्रकाश अपना लेक्चर शुरु करने के लिए मेज़ पर रखी पुस्तिका उठाते है तभी पीछे बैठा एक विधार्थी खड़े होकर (हकलाते हुए) कहता है – अ..अ..और द..देश ? देश का क्या ? उसकी तरक्की का क्या ? उसके बारे में कुछ नहीं सोचना है ? हमारे गाँव और उसके लोगों के बारे में नहीं सोचना है ?

तभी पीछे से किसी दुसरे विधार्थी की आवाज़ आती है – पहले अपने बारें में तो सोच हकले...। और इतना सुनते ही लोग हँसने लगते है, आशि भी पीछे देखती है तो ... उसे बेहद खुबसुरत और लम्बे कद काठी का एक लड़का खड़ा दिखाई देता है।

वो लडका फिर से हकलाते हुए कहता है – स..स..सर, म्म...मैं कुछ कहना चाहता हुँ।
सुर्यप्रकाश – (बेहद नम्रता के साथ) क्या नाम है तुम्हारा ?
वो लड़का हकलाते हुए जवाब देता है – स..स..सर अभी तो बताया था... व..वि...विश्वजीत...।

सुर्यप्रकाश – विश्वजीत...इसका नाम का मतलब क्या है ?
विश्वजीत – जी...ज जो विश्व को जीत ले।
सुर्यप्रकाश – शाबाश... यहां आओ और जो कहना चाहते हो सबके सामने कहो।

विश्वजीत सुर्यप्रकाश के पास जाकर करके खड़ा हो जाता है बोलना शुरु करता है –

विश्वजीत (हकला कर सभी विधार्थियों को सम्बोधित करते) – सफलता का असली मतलब क्या है ? अपनी जिंदगी को बेहतर बनाना, आसान बनाना या फिर कुछ और ? एक खुबसुरत और बेहतर एशोआराम की जिंदगी ने सफलता के मायने बदल दिये है, ऐसी जिन्दगी को जीने के लिए सफल होना जरुरी है, सफल होने के लिए बेहतर शिक्षा, बेहतर वातावरण होना जरुरी है। अगर सफलता सिर्फ बेहतर जिन्दगी को जीने का ही नाम है तो क्या हमारे देश के सैनिक और सिपाही सफल नहीं है ? उनकी जींदगी तो न जाने कितनी कठिनाईयों से भरी है, क्या अपनी जान को जोखिम में डाल कर हमारी रक्षा करने वाले फौजी सफल नहीं है ?... या फिर सर आप, (सुर्यप्रकाश की ओर देखते हुए) यहां की हालातों के देखते हुए भी आपने और आप जैसे और भी शिक्षकों ने यहां आकर, अपनी जान को जोखिम में डालकर हमें पढ़ाने का भार अपने कंधों पर लिया, क्या ये फैसला आपको आराम की जिंदगी देगा ? या सफलता देगी ? अच्छा पढना, अच्छी नौकरी करना, पैसे कमाना और आलिशान घर बनाना तो जीवन में कभी न कभी तो होगा ही, सिर्फ उसके लिए निरंतर प्रयास करना होगा क्योंकि यदि हमारे प्रयासों में निरंतरता है, तो परिणाम का कोई हक़ नहीं की वो हमसे दुर रहे। अभी किसी नें मुझे पीछे से ‘हकला’ कहा, सभी ने मेरा मज़ाक बनाया...पर मुझे कोई अफसोस नहीं पता है क्यों ? क्योंकि मैं मानता हुं कि ईश्वर नें मुझे ज्यादा दिया है, किसी के पास तो बोलने के लिए ज़ुबान भी नहीं होती और जिनकी ज़ुबान नहीं होती है न्..., वो अपने दर्द को भी कभी बयां नहीं कर पाते है और न कोई भी जान पाता है। जरा सोचिए क्या बितती होगी ऐसे इंसान पर। हम पढ़ लिख कर ऐसे लोगों की ज़ुबान बनेंगे, सहार बनेंगे अपने बुढ़ें माता-पिता जिनके सहारे हमने चलना सिखा, एक उम्मीद बनेंगे उनके लिए जो नाउम्मीद हो चुके है, साथी बनेंगे उनका जो पीछे छुट चुके है एक नया भविष्य बनेंगे अपने गाँव और अपने देश का... क्योंकि ‘जिंदगी में सफलता का असली मतलब दुसरों के काम आना होता है।‘

विश्वजीत इतना कह कर शांत हो जाता है, सभी विधार्थी विश्वजीत की ओर एक टकटकी लगा कर देखते रहते हैं, कक्षा के बाहर भी अन्य शिक्षकों का जमावड़ा लगा रहता है और वो भी विश्वजीत को देखते ही रह जाते हैं। ऐसा लगता है की जैसे समय रुक सा गया हो चारों और एक सन्नाटा सा हो जाता है।


तभी सुर्यप्रकाश जोर जोर तालियां बजाना शुरु करते है और देखते देखते पुरे सभी तालियां बजाना शुरु कर देते है, पुरा विद्यालय तालियों की गडगडाहट से गुजने लगता है। सुर्यप्रकाश विश्वजीत को अपने गले से लगा लेते है और कहते है – जियों मेरे बच्चे... (सुर्यप्रकाश कुछ और भी बोलना चाहते थे पर खुशी के मारे उनका गला रुंध जाता फिर भी वो कहने को कोशिश करते है )द..दै...अ..आ ...मैं भी हकलाने लगा हुँ ... दैट्स लाईक माई बॉय, वेल डन ।

विश्वजीत (सुर्यप्रकाश को कस कर पकडते हुए) – न...नो सर, इ..इट...इट्स... वेल बिगन, हॉफ डन।

कक्षा में कुछ देर में सब कुछ सामान्य हो जाता है लोग अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं कक्षा भी कुछ देर में समाप्त होती है और शिक्षक कक्षा से निकल कर चले जाते है..., उसी समय विश्वजीत के पास ‘बहादुर’ नाम का एक लड़का आता है और विश्वजीत से कहता है –

बहादुर – भाई मुझे माफ कर दे...वो...म्म.. मैंने पीछे से तुम्हें हकला... कहा था। भाई मेरे से दोस्ती करोगे ? विश्वजीत (गुस्से में उंगली दिखाकर) – एक शर्त पर... त..त्...तु मुझे...हकला...(एकाएक मुस्कुराते हुए) नाम से ही बुलाएगा...हा हा हा...।

दोनो एक दुसरे को गले लगा कर जोर जोर से हसने लगते है।

कहानी आगे जारी रहेगी...
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